इस संसार की, सांसारिक मनुष्य की प्रकुति कुछ ऐसी है कि वो अधिक अकेलापन नहीं सहन कर पाता। इसकी अधिकता में वो बौखला जाता है। लक्ष्मी देवी को घर का कुछ अधिक काम न करना पड़ता था। जो थोड़ा-बहुत काम होता था, उसे वो सुबह ही समाप्त कर लिया करती थी। षेष दिन उनका अपने षौक पूरे करने में बीतता था। दिन भर पत्रिकाए-पुस्तकें पढ़ना, सिलाई-कढ़ाई का काम करना उन्हें भाता था। कभी जब वो अपने इस दैनिक कार्य-कलापों से उब जाती तो उठकर पड़ौस में चली जाया करती थी।