+91-11-41631787
बचपन (कविता संग्रह)
Select any Chapter from
     
ताश
ISBN:

 

कहते हैं, ताश बहुत बुरी है बीमारी

लग जाए इक बार तो जाती न सुधारी,

हम तो इसके हो चुके हैं शिकार

लगता है, जैसे यही हो सब बीमारियों का सुझाव

मिल बैठते हैं रोज इस रोग के मरीज

कोई दे जाता है कोई ले जाता है फीस

यह लेन - देन तो चलता ही रहता है

आखिर हिसाब बराबर ही रहता है

बाजी शरू होने से पहले

सब सोचते हैं आज उन्हीं की होगी जीत

पत्ते बंटते ही सबके चेहरे पढ़े जाते हैं

कुछ कहते हैं - ‘‘वाह क्या पत्ते हैं !’’

दूसरे कहते हैं - ‘‘क्या खाक पत्ते हैं !’’

सबको रहता है जोकर का इन्तजार

जोकर न हो गया कि 

बन बैठा सारी बाजी का सरदार

इक्का गर निकल आया जोकर

तो बाजी शुरू हो जाती है डब्बल होकर

सबकी बोलती हो जाती है बन्द

और तेज हो जाती है दिल की धड़कन

तीन घंटे कैसे बीत जाते हैं

पता ही नहीं चलता

बिजली, पानी हो - न हो

कुछ अहसास ही नहीं होता

लगता है बाकी सब रोगों को

इस रोग से है एलर्जी

सब भाग जाते हैं दूर

चन्द घंटों के लिए

दे देते हैं हमें मुक्ति

न चुगली, न निन्दा

न घर की कोई चिन्ता

बस पत्ते और पत्तों के रोगी

मिल बैठते हैं घर की चारदीवारी से दूर

चंद घंटे बीत जाते हैं

हंसी - खुशी से भरपूर।

       

- स्वर्ण सहगल