+91-11-41631787
बचपन (कविता संग्रह)
Select any Chapter from
     
रिक्शावाला
ISBN:

 

 

कड़कती धूप - हवा थी ऐसे

बिन धुएं के आग हो जैसे

क्या देखा बाहर मैंने खड़े-खड़े

रिक्शावाला चला रहा था

अपनी रिक्शा लदे हुए

सांस फूली थी हांफ रहा था 

फिर भी रिक्शा चला रहा था

अधनंगा तन उसका था

पसीने में अपने नहा रहा था

बूढ़े पांव चला रहा था

कदम-कदम पर कर्राह रहा था

एकाएक जुड़े हाथ मेरे उपर को उठे

भगवान इसका भला करो

किस्मत उसकी को बदल दो

इससे ज्यादा मैं देख न पाई

आंख मेरी नम हो आई

पांव अन्दर की ओर मुड़ चले

मैं और ज्यादा सह न पाई।

      
- स्वर्ण सहगल