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बचपन (कविता संग्रह)
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सिलसिला
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यह सिलसिला लिखने-लिखाने का

बस यह बहाना है 

मन को बहलाने का

इस उलझी हुई दुनिया में

पुरानी यादों को सामने लाने का

बचपन की बातें, जवानी की रातें

ऐसे हैं सामने आते

जैसे कल ही की तो हों बातें

दो शब्द जो कागज पर हैं आते

सारे गमों को दूर भगा ले जाते

जाने कहां छिपा बैठा था

यह सिलसिला आज तक

भगवान की इस देन को 

शायद छिपा रखा था 

अपने भीतर आज तक

बाहर लाते ही दुनिया 

बदल गई अपनी

आनन्द की इक लहर दौड़ गई

भीतर से बाहर तक 

भगवान अब यही है प्रार्थना अपनी

चलता रहे यह सिलसिला

अपने अन्त होने तक।

       

- स्वर्ण सहगल