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बचपन (कविता संग्रह)
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पैसा
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पैसे की फैली बीमारी

भाग रही दुनिया है सारी 

सारे नियम तोड़ रहे हैं

पैसे के पीछे दौड़ रहे हैं

पैसा सबसे है महान

कहे बच्चा, बूढ़ा और जवान

लोगों ने बेच दिया इमान

पागल हुआ फिरे इंसान

पैसे की बोली बोल रहा है

इंसान को पैसे में तौल रहा है

लिया भाई ने भाई का गला पकड़

उसका भी हिस्सा मुझे दिला दो

ऐसा कोई चक्कर चला दो

कहां गया बहनों का प्यार

भाईयों का राखी का त्यौहार

प्यार पुराने छूट गए हैं

सारे नाते टूट गए है

रहा न माता-पिता का मान

पैसा बन बैठा भगवान

पैसा काम न आएगा

सब - कुछ यहीं रह जाएगा

खाली हाथ तू आया था

खाली हाथ ही जाएगा।


- स्वर्ण सहगल