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बचपन (कविता संग्रह)
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बेटे का गिला
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बेटे ने मां से गिला किया

इतना मैं हो गया हूँ बड़ा

इक बच्चे का बाप हूँ मैं

फिर भी तुम जतलाती हो

बेटे अभी तुम बच्चे हो 

अकल के तुम कच्चे हो

अरे पगले सोच जरा

सत्तर साल की हो गई मैं 

तू हैं तीस साल तो क्या ?

फर्क तो उतना ही रहा

जितना था जब तू पैदा हुआ 

मां के लिए तो बच्चा रहा

इसी रूप में रहने से बेटे

है तेरा अपना भला

माना इक काबिल इंसान बने हो

मां चाहेगी आसमान तुम छू लो

परन्तु मां को अपने बेटे को

‘बच्चा’ बनाए रखने का हक न छीनो

चली आई यह प्रथा सदा

इसको कोई बदल न सका

तुम्हारा बेटा भी 

कल को यही कहेगा

जो तुमने है आज मुझे कहा।

       

- स्वर्ण सहगल