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नई सुबह
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नई सुबह (नौ)
ISBN: 81-901611-13

 वीणा एक नये परिवेश में पहुँच चुकी थी| सब कुछ उसके लिए बदला-सा लग रहा था| उसे लगा था हर एक चेहरा अजनबी, लेकिन मन में मीठी-सी तरंगे रह-रहकर उठ रही थीं - इस नएपन का एहसास उसे भीतर ही भीतर उकसा रहा था खुश-खुश रहने को| अजनबी चेहरो की छेड़छाड़ उसे गुदगुदा रही थी| इसलिए पीछे छोड़ आई माँ-बहनो की याद उसे दुःखी नहीं कर रही थी| मन ही मन उसे देव की माँ अपनी माँ जैसी लग रही थी, उसके भाई-बहन अपनों से अधिक अपने लग रहे थे| आज एक नये पदवी मिली थी उसे - किसी की पत्नी, किसी की बहू, किसी की भाभी कहलाने का स्वप्न साकार हुआ था उसका|

 
अपने घर का सपना था उसका| छोटा-सा घर| पढ़ लिख जाने के बाद कुछ आगे की जब वह सोचती थी तो उसे दिखता था - एक दुल्हन का रुप| स्वयं को दुल्हन बने देखने की तमन्ना थी उसकी| कोई सुन्दर-सजीला नौजवान दिख जाता था उसे कभी-कभी सपनो में - बस, इससे आगे कुछ नही| बार-बार अपनी कल्पना को साकार रुप में देखने की तमन्ना होती थी उसे| लेकिन अपने मनोभावो को वह सीधे-सीधे शब्दो में व्यक्त न कर पाती थी| बस किसी और तस्वीर, किसी और की बाते होती थी - बहनो में, सखियो में| लेकिन मनभावन चेहरा दिखा उसे बहुत समय के बाद| देव को देखकर उसे लगा था कि ऐसे ही किसी वर की तलाश रही थी वास्तविक जीवन में उसकी आँखें| पहली बार देव को देखते ही उसने अपने मन की काल्पनिक छवि को रंग-रुप से चिञित कर देव का रुप दे दिया था| उसकी कल्पना रंग में आ गई थी देव के आ जाने के बाद| और आज वह देव की होकर उसके घर चली आई थी, अपने सपनो को साकार करने|
 
रात देर तक घर भर की औरतो ने उसे घेर रखा था| सब अपने-अपने तरीके से उससे बाते कह रही थी| और वीणा भी जहाँ तक उससे हो पा रहा था, सभी को सुन-समझने की चेष्टा कर रही थी| उकताहट महसूस करती जब कभी तब अमित दूर कर देता उसकी उकताहट उसे चाय पिलाकर| उसे अमित का स्वभाव बहुत अच्छा लगा था| महसूस किया था उसने कि अमित ही घर में सबसे ज्यादा खुशदिल है|
 
इतना तो जानती थी कि घर में सबसे छोटा है और मिलनसार है| अब महसूस कर रही थी कि उसकी खुशदिली से उपर एक बात और है कि घर भर के लोगो की जरुरतो का भी उसे ही ध्यान है| दोपहर बाद देहरादून से दिल्ली पहुँचने के बाद उसे अमित अन्दर-बाहर होता दिखाई दिया| कभी कुछ लाता हुआ और कभी कुछ ले जाता हुआ| माँ, पिता, भाई-भाभीयाँ, सभी उसे ही आवाज दे रहे थे| जैसे घर में अमित की ही चलती हो| और इतनी व्यस्तता के बावजूद अमित का वीणाके पास आना और चाय के लिए बार-बार पूछना वीणा को बहुत अच्छा लगा था |
 
अब अमित आया तो रात के साढ़े नौ बज रहेथे| इस समय वीणा के पास सिर्फ कोमल बैठी थी| वीणा भी अमित से अब काफी खुल कर बात कर रही थी| अमित को देखकर कोमल ने मुस्कुराकर कहा - "लो आ गया फिर तुम्हारादेवर|"
 
"क्यों? आपका कुछ नही क्या?" अमित ने तुनक कर पूछा कोमल से|
 
"भई, मेरे लिए तुम्हारा नाता नया तो नही, वीणा के लिए तो तुम पहली बार बने हो देवर|" - कोमल ने चुटकी ली|
 
"ठीक है, ठीक है, अब आप पिंड छुड़ाना चाहती है न मुझसे| भई, मैं सबका देवर हूँ| सबसे छोटा, सभी का सेवक|"
 
तब कोमल ने बात का रुख बदला - चलो भाई मान लिया मेरे प्यारे देवर जी, अब आप कहिए कैसे आना हुआ? क्या सेवा करेंगे अब आप हमारी|"
 
"हाँ यह हुई न बात|" - खुश हुआ अमित और बोला - "चलिए अब खाना लग चुका है|"
 
वाह! देखो वीणा| कितना ध्यान रखता है सबका अमित|" और वीणा ने प्रशंसा-भरी नजरों से देखा अमित को| उसे लगा सामने अमित नही प्रेम खड़ा है| प्रेम भी तो ऐसा ही है| वीणा के मन में अमित प्रेम के साथ जुड़ गया - एक छोटे भाई की तरह|
 
रिश्तो की शुरुआत ऐसे होती है, मीठी-मीठी बातो के साथ|
 
दो आत्माओं का मिलन एकाएक ठहर गया|
 
वीणा की द्रष्टि देव के पेट के बाएँ भाग की ओर पड़ी| वहाँ दो इंच चौड़ा टेप लगा हुआ था| अपनी बिखरी साँसों को काबू करने की कोशिश करते हुए उसने पूछा - "यह क्या है? कोई चोट लगी है क्या?"
 
यह सुनकर देव चौंका|
 
"नहीं| यही तो है Sigmoid Clostomy|"
 
Sigmoid Clostomy....? यह क्या ....? "मैं समझी नहीं...|" - वीणा को देव के शब्द पहेली से कम नहीं लगे|
 
यह सुनकर देव कुछ संभल गया| प्रेम का नशा जैसे एकाएक उतर गया उसका| वह वीणा के पहलू से हट कर उठ गया| कुछ परेशान हो उठा|
 
"तुम जानतीतो हो मेरे आपरेशन के विषय में!" - देव ने स्पष्ट करने की चेष्टा की|
 
"आपरेशन कौन-सा ... आपरेशन?" - वीणा हतप्रभ थी|
 
"कैसी बात कर रही हो वीणा? - शादी के विग्यापन में दिया था - फिर रमेश भाई ने सब बताया था डैडी को...|" - देव की परेशानी बढ़ गई एकाएक|
 
"मुझे नही मालूम देव| तुम कैसी बात कर रहे हो| आपरेशन कौन-सा?" - वीणा सच में भूल-सी गई थी, आपरेशन शब्द को जो उसने अखबार में ही पढ़ा था| हाँ उसे ऐसा कुछ याद नही आया कि रमेश भाई ने कुछ ऐसा कहा था उससे या डैडी से| या कुछ ऐसा लिखा था|
 
"ऐसी बात तुम कैसे भूल रही हो? विग्यापन में साफ लिखा था - Sigmoid Clostomy |" देव ने फिर स्पष्ट किया था| कुछ नर्वस हो चला था वह|
 
तब जैसे याद आया वीणा को| उसे विग्यापन में लिखे शब्द याद हो आए थे| बोली, "हाँ ऐसा कुछ लिखा तो था| लेकिन वह क्या होता है? उस पर मैंने अधिक ध्यान नही दिया|"
 
"वह यही क्षेञ है जो तुम देख रही हो| इसी को Sigmoid Clostomy कहते हैं| मेरा इसी का आपरेशन हुआ था|" - देव हैरान था वीणा की अनभिग्यता देखकर|
 
"यानि...?" वीणा ने खुलासा चाहा| वह वास्तव में कुछ नहीं समझ पा रही थी|
 
तब देव ने कहा - "वह तो तुम्हें मैं समझा देता हूँ, लेकिन क्या रमेश भाई ने यह सब नहीं समझाया तुम्हें या डैडी को?" - जैसे देव को वीणा की इस अनभिग्यता पर संशय था|
 
"नहीं देव, तुमसे अब किस बात का परदा! ऐसी कुछ बात नहीं हुई थी|"
 
- वीणा को देव के शब्दपहेली समान लग रहे थे| यह अंग्रेजी का शब्द - Sigmoid Clostomy - जैसे किसी गम्भीर भाव को छिपाए था| इसका मतलब ही उसे नही पता| विग्यापन के इस शब्द पर उसने ध्यान ही नही दिया और न ही उसे किसी ने इसका अर्थ समझाया| यह शब्द जैसे उसके जीवन में कोई बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है, ऐसा सोचकर उसे इसका अर्थ न समझना जैसे अपनी सबसे बड़ी भूल लगी|
 
लेकिन इस शब्द के सहारे तो उसने शादी नही की थी| आज फिर यह शब्द उसे इतना रहस्यमय क्यों लगने लगा| कुछ तो ऐसा है इस शब्द का अर्थ, कुछ गम्भीर ही है, तभी देव परेशान हो उठा है उसे इतना अन्जान जानकर| भारतीय संस्क्रति- किस मोड़ पर है?
 
अंग्रेजी का दबदबा - एक शब्द - Sigmoid Clostomy ने जीवन की धारा को ही बदल दिया| न मतलब पता था, न जानने की कोशिश की| सूरत देखी और उसी पर मर मिटे|
 
"मुझे विश्वास नही हो रहा| उन्होंने तो कहा था दूसरे पञ में भी लिखा है और हमारी मंगनी के दिन वह डैडी को बाहर लेकर भी गए थे। यही कारण था कि मैंने चाहते हुए भी तुमसे बात नहीं की।" - देव भी दुविधा में फंस गया था। "
 
मेरे डैडी ने कुछ ऐसा नहीं बताया घर में। लेकिन क्या यह सीरीयस बात है।मैं तो इस विषय में कुछ नहीं जानती | मुझेविस्तार से बताओ|" - वीणा सब कुछ जैसे अभी जानने को उत्सुक हो उठी थी|
 
"वीणा! मुझे समझ नही आ रहा कि बात कहाँ से शुरु करुँ| लेकिन तुम मेरी पत्नी बन चुकी हो और अब तो तुमसे मेरा कोई परदा नहीं है| फिर भी बात किस तरह करुँ कि तुम्हें यह सब बातें अनुचित न लगें।- देव ने अपनी भावनाओं को संभालने की चेष्टा करते हुए कहा| उसे लगा कि यदि वह अभी सारी बातें खुल कर नहीं बताएगा तो न जाने वीणा पर क्या प्रभाव पड़ेगा| वह मानसिक रुप से अशान्त हो जाएगी| न जाने क्या कर बैठे? हो सकता है उसे छोड़कर चली जाए| उसने स्वयं को ऐसी परिस्थितिसह सकने में असमर्थ पाया| बड़ी मुशिकल से तो वह शादी को माना था| अब शादी के बाद ऐसी परिस्थिति सामने पाकर वह स्वयं को ही दोषी समझ रहा था| भावनाओं को संभाला उसने और बोला, - "वीणा जैसा कि हमने विग्यापन में लिखा था कि मेरा आपरेशन हुआ था - बडा आपरेशन हुआ था और शादी के लिए उसका खुलासा करना जरुरी था इसीलिए मेरी जिद्द थी कि पूरी बात बताई जाए| लेकिन सच बात यह कि मुझसे यही कहा गया कि तुम लोगों को सब बता दिया गया है| तुम इतना तो जानती हो कि मेरी शादी की सारी तैयारी रमेश भाई ने ही कि थी| माँ-बाबूजी को इन बातों से कोई मतलब नहीं| वे तो इन बातों में दखल नही देते| सच कहूँ तो उन्हें कोई दखल देनेभी नही देता| यहाँ जो कुछ भी होता है हम भाईयों की आपसी राय से होता है|" - देव धीरे-धीरे सब गाँठे खोल रहा था|
 
वीणा कुछ सहम सी चुकी थी लेकिन कुछ बोली नही, सुनती रही - देव के शब्दों को - "मैं अपनी शादी नही करवानाचाहता था| एक बार आपरेशन हो चुका है फिर कोई परेशानी हो जाए, कल का क्या पता! लेकिन माँ दबी जुबान से कहती थी अमित से बार-बार| रमेश व भाई साहब को चिट्ठी लिखवाती थी| प्रमोद के माध्यम से भी मुझ पर जोर डलवाती थी। इस बार जब रमेश भाई छुट्टी आए तो उन्होंने मेरे डाक्टर से जा कर बात की। उसने भी अपनी राय उनके पक्ष में दी थी। तभी मैं माना| मैंने अपनी बीती जिन्दगी में इतना एकान्त भोगाहै, इतनी परेशानियाँ सही है कि मैं भी अपना घर बसाने को हामी भर बैठा और जिसका परिणाम है मेरी-तुम्हारी शादी|"
 
तब देव कुछ रुका उसने वीणा की ओर देखा| वह देव को एक टक देखे जा रही थी| नई शादी, नए परिवेश में वह जितनी खुश थी, अब उतनी सहम सी गई थी| हर पल उसका दिल अग्यात आशंका से भरता जा रहा था| अगले पल क्या खुलासा होगा, उसे नही मालूम था| लेकिन संस्कारों से उसकामन बहुत कोमल था| पति के शब्दों के प्रति उसके मन में श्रद्धा थी| इसी के वशीभूत हुई बोली - "मैंने यह तो नही कहा और न ही मैंने सोचा कि आपने शादी क्यों की? मैं तो इस चोट के निशान को देखकर आपसे यही पूछ बैठी कि यह क्या है| आप कह रहे है कि आपका मेजर आपरेशन हुआ था, लेकिन अभी भी मुझे समझ नही आया कि किस बात का आपरेशन था| आपको तकलीफ क्या थी ? - मैं छोटे से परिवार से आई हूँ| घर में कोई बिमारी नही सुनी - छोटी मोटी तकलीफें होती रहती थी| शेष कुछ भी नही| परिवेश ही ऐसा है, इसीलिए समझ नही आया|"
 
देव तब तक विचारमग्न होकर सोचरहा था कि क्या कुछ वीणा को बताए और क्या कुछ नही बताए| पलंग के पास टेबल पर पड़ी सिगरेट की डिब्बी से एक सिगरेट निकालकर उसने सुलगा ली| फिर धीरे से कहना शुरु किया| "पूरी कहानी तो अपनी फिर कभी सुनाउँगा, लेकिन बिमारी के बारे में संक्षेप में इतना कह सकता हूँ कि पी एच डी करते समय मुझे सुबह के समय शौच के साथ खून आने लगा था| डाक्टर ने कहा बवासीर है जिसका कि छोटा-सा आपरेशन होगा| उसी के लिए मुझे अस्पताल में भर्ती किया गया| वहाँ आपरेशन थियेटर में किसी और डाक्टर ने मेरा निरीक्षण किया| मेरे डाक्टर से उसने काफी बहस की और मेरा आपरेशन कैंसिल कर मेरा दुबारा परीक्षण किया गया| माँस का एक टुकडा बायोप्सी केलिए भेजा गया| उसकी रिपोर्ट देखकर मेरा डाक्टर मुझ से मुहँ छिपाने लगा| लेकिन प्रमोद और अमित ने जल्दी से दूसरे डाक्टर से सम्पर्क किया और उसने कहा कि यदि देरी की तो कोई इलाज सम्भव नहीं होगा| वास्तव में वह कैंसर की शुरुआत के लक्षण थे। तबउसने कोई रिस्क न लेते हुए मेरा रेक्टम ही निकाल दिया ताकि लक्षण जड़ से ही चले जाएँ और अब उसी करण मैं स्टूल बजाए प्राक्रतिक तरीके के क्रञिम रास्ते से करता हूँ| पहले तो मुझे आगे बैग लगाना पड़ता था लेकिनअब स्थिति दूसरी है| मेरे पास एक मशीन है| जिसकी सहायता से मैं सुबह सवेरे पम्प करके सारी सफाई कर लेता हूँ, तत्पश्चात् चौबीस घंटे मुझे कोई परेशानी नहीं होती.... इसे क्रञिम मल-द्वार य Sigmoid Clostomy कहते हैं|"
 
Sigmoid Clostomy यानि क्रञिम मल-द्वार डाक्टरी शब्दजिसका मतलब आम आदमी को समझ नही आ सकता, जब तक कि किसी डाक्टर से न पूछा जाए या फिर शब्द कोश में ढूँढ़ा न जाए| इस एक शब्द ने देव की सारी पहचान ही बदल दी थी| वीणा को अपना सिर घूमता नजर आया| वह बोली - "आपका मतलब है आपको कैंसर है|"
 
"है नही था - वह भी शुरुआत ही थी उसकी| जब मेरा पूरा रेक्टम ही निकाल दिया गया तो अब कैसा डर!... तुमने औरतों का भी सुना होगा अक्सर औरतों की बच्चेदानी पर ट्यूमर हो जाता है और तब डाक्टर लोग बच्चादानी निकाल देते हैं - बस मेरे साथ ऐसे ही हुआ है, इसीलिए यह बात ऐसी थी कि तुम्हें बताना जरुरी था|" - देव ने स्पष्ट किया।
 
तब तक वीणा को अपना सिर घूमता महसूस हो रहा था| यह कैसे शब्द थे जो देव के मुख से वह सुन रही थी| क्या इसी सुहागरात की कल्पना की थी उसने? क्या शादी के बाद यही सपना पूरा होना था उसका?
 
उसने अपना सिर थाम लिया आँसू आँखों से बहने शुरु हो गए| तब देव ने फिर कहा - "मैंने जो बात तुम्हें बताई है वह बिल्कुल सच है, और यह भी सच है कि अब मुझे कोई खतरा नहीं - ऐसा डाक्टर ने भी कहा है और मुझे भी यही महसूस होता है| आपरेशन हुए दो साल हो गए हैं और इस दौरान मेरा वजन बीस किलो बढ़ चुका है| पहले की मेरी फोटो देखोगी तो स्वयं ही अंदाज लगा लोगी|"
 
"मुझे कुछ समझ नही आ रहा... मैंने ऐसी तो कल्पना भी नहीं की थी|" - वीणा ने आँसू बहाते हुए कहा|
 
देव समझ गया कि वीणा के मन को ठेस लगी है उसकी सच्चाई जानकर| लेकिन यह भी ठीक थी अभी तो केवल मन्ञोच्चार द्वारा ही एक रिश्ते की शुरुआत हुई थी| भावनाओ की थाह वह उसकी कितनी लगा पाएगी, ऐसा नही जानता था वह| कोई उसकी मिञ तो थी नहीं पुरानी जो उससे कुछ दूसरी तरह से अनुनय-विनय कर सकता| उसे लगा वीणा ज्यादा डरी या उसे किसी ने बहकाया तो वह उसे छोड़कर चली जाएगी| काश! ऐसा न हो| उसने सोचा यदि ऐसा हो गया तो वह भी नही जी पाएगा| अपनी हार तो उसने आज तक नही मानी है| हर मुशिकल का सामना उसने पूरे साहस से किया है| उसकी जिन्दगी में कितने उतार-चढ़ाव आए, सबका मुकाबला किया है| रिसर्च के दौरान उसे एक बार लगा था कि सब तबाह हो गया - जब उसकेप्रोफेसर ने उसके लिखे सब रिसर्च पेपर अपने नाम से अन्तराष्ट्रिय पञिकाओ में प्रकाशित करवा लिए थे| तब उसे लगा था कि सपने बिखर गए है उसके| दूसरी बार उसे तब अपने सपने बिखरते लगे जब बार-बार कोशिश करने पर भी उसे नौकरी नही मिली थी और अन्तिम बार उसे तब लगा था जब उसने स्वयं को म्रत्यु से जूझते पाया था| लेकिन साहस से सब कठिनाईयों का मुकाबला करने के बाद उसने विजय को अपने सामने पाया था|
 
इन क्षणो से कुछ समय पहले तक वह स्वयं को सबसे भाग्यशाली पुरुष मान रहा था| लेकिन अब...? अब उसे कोई रास्ता नहीं सुझाई दे रहा था कि जिसकी मदद से वह वीणा का विश्वास जीत ले| बात ऐसी थी कि विश्वास जीतने के लिए चन्द घंटो का समय था - केवल चन्द घंटो का| क्योंकि सुबह कमरे से निकलते ही यदि वीणा कोई निर्णय ले बैठी तब...? - तब देव का क्या होगा?