अरुण दिल्ली शहर के पहले दस रईसों में गिने जाने वाले सेठ उतम प्रकाश का सबसे छोटा बेटा था| चाँदी के पालने में पला| चाँदी की चम्मच से ही पहला-पहला अन्न का दाना उसके मुँह में डाला गया| दादी का दुलारा था| माँ की आँख का तारा था| माँ थी सब ओर से घिरी हुई| नौकर-चाकरों की भीड़ का नियन्ञण, घर में आने वाले हर मेहमान की सेवा का ध्यान और उस पर पाँच बेटे और एक बेटी का शोर-शाराबा| सबकी उम्र में डेढ़ साल, दो साल का अन्तर था| अरुण यदि छः महीने का था तो सबसे बड़ा बेटा अशोक था बारह वर्ष का| ऐसी फौज जिसके जनरल हो बाहर वर्ष के और जिसका छोटा सिपाही हो छः महीने का, जब कही किसी जगह धावा बोलती हो तो सोच सकते है कि कितना कुछ बचा रह सकता है वहाँ! लेकिन इस फौज को कोई भी अनुशासन नही सिखा पाया, क्योंकि उनके सिर पर वरद हस्त था दादी माँ का| और दादी माँ की कड़क आवाज सुनकर घर में एकदम सन्नाटा छा जाता था| पर बच्चों की आवाजें दादी माँ के कानों में शहद घोलती थीं|