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नई सुबह
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नई सुबह (आठ)
ISBN: 81-901611-13

 

 
 
लेकिन घर से दूर बैठे मोहन कुमार को जब इसकी खबर मिली तो वह परेशान हो गया| उसे एकाएक विश्वास नही आया था कि देव की शादी इतनी जल्दी, एकाएक कैसे तय हो गई| वह मान कैसे गया? और मान भी गया तो लड़की कैसे पसन्द की? कहीं उसकी स्थिति को छिपाया तो नही गया? लेकिन मोहन को रमेश पर भरोसा था| तभी आर्मी एक्स्चेंज से उसने रमेश से फोन पर बात करने के लिए काल बुक करवा दी|
 
सिकन्द्राबाद से दिल्ली काल मिलने में चार घंटे लग गए| और इस बीच कर्नल मोहन कुमार लगातार शराब पी रहा था| मानसिक तनाव को दूर करने का यही साधन उसे अच्छा लगता था| उसकी पत्नी निम्मी इन उलझनों को दूर नही कर पाती थी| उलटे कई बार बनती हुई बात को और बिगाड़ कर उसे अधिक खुशी मिलती थी| ऐसी कई औरतें भी होती है जो हर अच्छी-बुरी बात को सिर्फ बिगाड़ने की द्रष्टि से देखती है| कोई उनके माध्यम से हँसे ताकि उनकी तारिफ हो - यह उन्हें अच्छा लगता है| लेकिन कोई अपनी खुशी से खुश होकर हँसे और उन्हें बताए कि उसे फँला खुशी मिली है, ऐसा उन्हें अच्छा नही लगता।उपर से हँसती है लेकिन मन ही मन उन्हें अच्छा नही लगता| ऐसा ही हुआ था उसे देव की शादी की खबर सुनकर| उसे मालूम भी न था और बात पक्की हो गई| तभी तो तार पढ़ते ही मोहन कुमार को बोली, - "लो जी! शादी पक्की हो गई और हमें पता भी न चला| सब काम पूरा करके हमें बता रहे है| अच्छा होता शादी के बाद ही खबर कर देते|" - और तार उसकी तरफ बढ़ाते हुए बोली, - "कल कुछ हो गया तब परेशानी हमें सहनी पड़ेगी|" उसने बुरा-सा मुँह बनाया साथ ही|
 
मोहन कुमार तब कुछ बोला नहीं| तार देखने लगा| लेकिन उसमें कुछ अधिक नही लिखा था, केवल चन्दशब्द थे - "देव की शादी नौ फरवरी की तय हुई है| दिल्ली पहुँचे| - रमेश|"
 
मोहन कुमार ने पढ़ा और तार रख दी| कुछ पल वह सोचता रहा फिर उठकर उसने सामने के रैक से शराब की बोतल निकाल ली और निम्मी से गिलास लाने को कहा| तब किचन की तरफ जाते हुए निम्मी ने कहा - "बस, आपको तो यही तरीका आता है सोचने का| परेशानी हो तब भी, खुशी हो तब भी|" फिर कुछ रुककर बोली, कुछ कहोगे नही?"
 
"कहने को क्या है मेरे पास|" - मोहन कुछ खोया हुआ, कुछ सोचते हुए बोला| उसका मन दिल्ली में पहुँच चुका था| देव के मन को टटोल रहा था|
 
"क्यों नही है कुछ? सबसे पहले तुम्हें चाहिए सीधे-सीधे रमेश से पूछो कि उसने लड़की वालों को क्या कुछ बताया है, फिर स्वयं लड़की वालो से बात करो| कल कही कुछ हो गया तो नाक अपनी ही कटेगी|" - निम्मी ने स्पष्ट रुप से कहा|
 
"यही करुँगा, पहले रमेश से बात हो जाए|" - मोहन को निम्मी की बात उचित लगी थी|
 
तभी टेलीफोन की घंटी बजी| मोहन ने वहीं बैठे फोन उठा लिया|
 
"हैलो| सर| दिल्ली नम्बर होल्डिंग सर|" आपरेटर की आवाज थी|
 
"ओके| - हैलो....|" आपरेटर ने लाईन क्लीयर कर दी| दूसरी तरफ रमेश ही था |
 
"हैलो| भाई साहब| गुड ईवनिंग|"
 
"गुड ईवनिंग| रमेश| कैसे हो भाई?"
 
"मैं ठीक हूँ, आप सुनाईए?" फिर कुछ रुककर आवाज आई "मेरी तार मिल गई थी?"
 
"हाँ मिल गई थी| देव खुश है क्या?"
 
"बहुत खुश है|"
 
"सुनो रमेश| तुमने देव के विषय में पूरी जानकारी दी है न लड़की वालों को|" - रमेश ने पलभर का मौनरखा| मोहन ने दुबारा कहा, "हैलो| मेरी बात सुन रहे हो न?"
 
"हाँ भाई साहब, सब कुछ बताया है और मैंने डाक्टर गुप्ता से भी बात की थी| उसने भी देव का चेक-अपकरके यही कहा है अब कोई परेशानी नही है| शादी के बारे में उसी से पूछ कर देव ने हाँ कीहै|"
 
"फिर ठीक है| मुझेइसी बात की चिन्ता थी| लड़की कैसी है? " - मोहन ने राहत की सांस ली।
 
"अच्छी है।एम ए बी एड है सैन्ट्रल स्कूल में टीचर है|"
 
"और फेमिली|"
 
"पढ़े लिखे लोग है| देहरादून में अपना घर है| पिता रिटायर्ड है| लड़की घर में दूसरे नम्बर पर है|"
 
"चलो अच्छी बात है| देव को मेरी और से बधाई देना|" - मोहन सब विस्तार से सुनकर खुश हो गया|
 
"आप आ कब रहे हो?" - उधर से रमेश ने पूछा|
 
"कोशिश करुँगा छुट्टी जल्दी मिले| नहीं तो शादी से एक-दो दिन पहले जरुर पहुँच जाउँगा|"
 
"चलिए अच्छी बातहै| भाभी कैसी है?" - रमेश को निम्मी का ध्यान हो आया| कहीं भूल जाता तो रमेश की शामत आ जाती|
 
"अच्छी है|" लो बात कर लो|" फिर मोहन ने निम्मी को फोन पकड़ा दिया| निम्मी रमेश से बात करने लगी| बातें होती रहीं| कभी मालती ने बात की, कभी अमित ने और माँ ने भी निम्मी से बात की| देव घर नही था| पन्द्रह मिनट से उपर सिलसिला चलता रहा| सरकारी फोन का सही इस्तेमाल हो रहा था| और यह तो अब सबको अपने अधिकार क्षेञ की बात लगती है| सभी करते है, फिर काहे की चिन्ता!
 
फोन पर बात करके मोहन कुमार को तसल्ली हो गयी थी| अब वह खुशी से पी रहा था| रात काफी हो रही थी| निम्मी खाना लगाने को उतावली हो रही थी| उसने मोहन से दो-तीन बार आग्रह किया उठने को, और मोहन ने उठते-उठते एक पैग और बनाया और बढ़कर निम्मी के होठों पर लगा दिया और बोला उससे "चिर्यस फार द हैल्थ आफ देव|"
 
और निम्मी ने भी मोहन की खुशी में एक छोटा सा घूँट भर कर साथ दिया|
 
देव की बारातमें नाचने वाले तीन लोग थे - प्रमोद, अमित व रमेश कुमार| मोहन व बाबूजी बैंड के साथ-साथ चल रहे थे| देव की बहन नीता भाभी मालती व निम्मी, माँ और कोमल सभी देव के साथ कार में बैठे थे| यही थे बराती| और कोई भी नही| हाँ, देखने वाले भी यही सोच रहे थे कि बारात में बैंड वालों की संख्या अधिक है| लेकिन इन तीनों ने रौनक लगा रखी थी| होटल से घर तक का रास्ता लगभग आधा किलोमीटर का था और ये सभी सारे रास्ते नाचते चल रहे थे| मौहल्ले के बच्चे-बूढ़े सभी खुशी-खुशी सभी इस बारात को देख रहे थे| ऐसा लगता था कि जैसे देखने वाले सभी बाराती हों| इसलिए सड़क भी भरी-भरी दिखाई पड़ रही थी|
 
स्वागत द्वार के पास पहुँच कर प्रमोद व अमित काफी देर तक नाचते रहे| वधू पक्ष वाले सभी उन्हें देख रहे थे| सभी के चेहरों से प्रसन्नता झलक रही थी| अमित नाचते हुए भीअपनी आँखों को इधर-उधर दौड़ा कर कुछ देखने की चेष्टा कर रहा था| - सभी के चेहरो में वह कोई एक चेहरा खोजना चाह रहा था| - शायद प्रिया का! - लेकिन प्रिया वीणा के पास थी| घर में| उसे क्या मालूम था कि कोई उसका दिवाना बन गया है| वह तो अपनी दीदी की शादी में इतनी रमी हुई थी कि अमित या कोई और उसे पास से आकर भी घूरने लगता तो भी जान न पाती| और अमित तो चोर निगाहों से अभी उसे ढूँढ़ ही रहा था |
 
बैंड रुका तो पण्डित जी ने मन्ञोच्चार से बारात का स्वागत किया| फिर पन्नालाल ने आगे बढ़कर देवके पिता के गले मेंमाला डाल कर उनका स्वागत किया| तत्पश्चात् सभी का स्वागत किया गया|
 
पंडाल घर के भीतर ही लगाया गया था| घर काफी खुला था और लगभग सौ व्यकित आसानी से एक साथ खड़े हो सकते थे| बारात तो थोड़ी थी ही और पन्नालाल ने भी इसी बात को ध्यान में रखते हुए बहुत कम व्यक्तियोंको आमन्ञित किया था| साथ ही काफी लोग तो वापिस जा चुके थे अपनी बधाई देकर|
 
जयमाला के समय अमित देव के साथ ही खड़ा था और बजाय देव व वीणा की जयमाला देखने के उसने अपनी निगाहें प्रिया पर टिका रखी थी| प्रिया हँसती थी तो अमित का सारा शरीर पुलकित हो उठता था| इस समय उसके ह्रदय की धड़कन बढ़ी हुई थी| प्रमोद ने उसकी चोर निगाहों को पढ़ लिया था और तभी उसके कान में बोला था आहिस्ता से - "अब तुम मुझसे नही बच सकते, बच्चू मैंने सब देख लिया है|"
 
अमित सकपका गया| लेकिन कुछ बोला नहीं| मुस्कुरा भर दिया| जब जयमाला के बाद देव को वीणाके साथ भीतर ले जाया गया तब प्रमोद अमित की बाजू पकड़े पंडाल के एक कोने में आकर बैठ गया| सामने संगीत पार्टी ने संगीत की धुन छेड़ रखी थी|
 
- "अब बोलो, तुम्हारी क्या सलाह है?" - प्रमोद ने धीरे से पूछा अमित से |
 
"मेरी?" अमित ने चौकने का अभिनय किया| वह मन ही मन मुस्कुरा रहा था| खुश था अपनी चोरी पकड़ी जाती देख कर उसे लग रहा था कि प्रमोद उसका रास्ता आसान कर सकता है|"
 
"और नहीं तो मेरी ? क्या कर रहा था तू, मैं सब देख रहा था !" - प्रमोद उसकी बाजू को प्रेम से मरोड़ते हुए बोला|
 
"मैंने तो कुछ नही किया . . . |" - अमित ने अन्जान बनने की असफल चेष्टा की|
 
"कुछ नहीं किया ! किसे देख रहा रहा? मुझसे झूठ बोलेगा तो अभी फँसा दूँगा - देख वह सामने खड़ी है मैं अभी उसे अपने पास बुलाता हूँ और बोल देता हूँ कि तुम उससे कुछ कहना चाहते हो|" - अमित को लगा जैसे प्रमोद जो कह रहा है वह करके दिखा देगा| घबरा गया और हथियार डालते हुए बोला, "अरे नही बाबा, ऐसा नहीकरना| मैं तो वैसे ही देख रहा था|"
 
तब प्रमोद ने कहा - "मान गए न मुझे उस्ताद ?"
 
"हाँ मान गया| अब हुक्म दीजिए!" और तब अमित ने भी अपने मन की हर चाह को खोल कर रख दिया प्रमोद के सामने!
 
"हुक्म यही है कि अब इस रास्ते से पीछे नही हटना है तुम्हें|"
 
- जैसे मुँह माँगी मुराद मिल गई अमित को प्रमोद के इन शब्दों से|
 
"ऐसा अब मुमकिन भी तो नहीं|" इस रास्ते पर आगे ही बढ़ा जा सकता है| पीछे हटने का कोई चाँस नहीं हैं" - अमित ने उसी लहजे में जवाब दिया|
 
"बहुत अच्छी बात है - जितनी हो सकेगी मैं भी तुम्हारी सहायता करुँगा|" - प्रमोद ने उसे आश्वस्त किया |" आओ! अब भीतर चलते है सबके पास|"
 
"चलिए गुरुजी!" - ये दोनों एक दूसरे की बाँह में बाँह डाले भीतर की ओर बढ़ गए|
 
उस समय संगीत पार्टी का एक गायक संगीत की मधुर धुन पर एक गीत गा रहा था, जिसके बोल थे -
 
"हमें तुमसे प्यार कितना, ये हम नही जानते
 
मगर जी नही सकते तुम्हारे बिना....|"
 
अमित को ये बोल अपनी मनोदशा जैसे लगे| वह उन्हें ही गुनगुनाने लगा|