नई सुबह होगी, नए सपने होंगे
नया-नया जीवन होगा! मधुर मिलन की घडि़याँ होंगी
नित नई तरंग जीवन में होंगी। हर नई सुबह जीवन की
नया मार्गदर्शन होगा।
वीणा के उन्हीं
प्रतीक्षारत नयनों को
सस्नेह समर्पित।
सब कहते हैं सच बहुत कडुवा होता है। उसका सामना कर पाना हर किसी के बस की बात नहीं। जीवन में आई कडुवाहटों का सामना मन कैसे करें कि वह अमृतमयी लगें। वीणा सरीखी नारी आपको हर घर में मिल जाएगी। माँ के रूप में, पत्नि के रूप में, बहन के रूप में या फिर एक प्रियतमा के रूप में। हर नारी सहज भाव में जीवन की सच्चाईयों से जूझते दिख जाएगी। सच की कडुवाहटों के बीच वीणा सरीखी नारी पत्नि के रूप में अपने जीवन साथी में गुण ही खोजती है। उन्हीं गुणों के सहारे जीना सीखती है तो उसे पति के दोष नहीं दिखते। यही भाव हैं वीणा के जो गुणवानों के गुणों को देखते हैं, गुण में दोष न ढूँढ़ने की प्रेरणा देते हैं। इन्हीं भावों से उसने अपना सब कुछ अपने परिवार के कल्याण में समर्पित कर दिया। तभी यह वीणा अपनी माँ को उसी के जीवन का उदाहरण देकर यही कहती है कि ‘माँ! मैं ही नहीं हर औरत कितनी आशावादी होती है। अपने जीवन की हर सुबह को नई सुबह का दर्जा देती है। हर नई सुबह वह एक नए सपने को जन्म देती है। हर रोज़ उसकी एक नई पहचान बनती है और हर नई सुबह से उसकी आँखें इसी प्रतीक्षा में लगी रहती हैं कि कब उसके, उसके परिवार के सपने साकार होंगे! कब वह पूर्णता को प्राप्त होगी!’ यही वीणा है नायिका इस ‘नई सुबह’ की। ‘नई सुबह’ की नायिका वीणा के जीवन-चरित्र को देख कर सहानुभूति होती है, गुस्सा भी आता है क्योंकि उस जैसी समभाव वाली नारी सरलता से नहीं दिखती हमारे समाज में और दिखती है तो उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ कैसे करते हैं सब कि उस पर भी वह स्वयं को पूर्ण मानती है। यही कथा है इस "नई सुबह की नायिका की"