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बचपन (कविता संग्रह)
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माँ
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तुम्हारी यादों को भुला दूं

यह मुमकिन नहीं है

तुम्हारी बातों को भुला दूं

यह मुमकिन नहीं है

मुमकिन है तो बस इतना

उन यादों को बसा लूं 

अपने दिल में सदा

कोशिश करती रहूँ, 

पूरी करती रहूँ

सारी मुरादें तुम्हारी 

अपने कर्मों से, मैं अदा करती रहूं

मां बनकर ही पहचान पाई हूँ, 

मां क्या चीज है होती

बच्चों की खुशी में ही 

उसकी अपनी जीत है होती

काश मैं तुम्हारे जैसी बन पाती ‘मां’

वो ठंडी छांव ला पाती मैं अपने यहां

हर बात है तुम्हारी याद आती मुझे

अच्छे - बुरे की पहचान अब आती मुझे

बातें होती हैं यादों में सिमटने के लिए

यादें होती हैं बातों को ताजा रखने के लिए

वही बातें मेरे दिल में बनकर यादें बसी हैं

तुम्हारी यादों को भुला दूं 

यह मुमकिन नहीं है

तुम्हारी बातों को भुला दूं 

यह मुमकिन नहीं है
 
मुमकिन है तो बस इतना

उन यादों को बसा लूं अपने दिल में सदा।

 

- स्वर्ण सहगल