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बचपन (कविता संग्रह)
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उदास मन
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चिन्ताओं से घिरा हुआ
 
मेरा मन उदास क्यों है ?

तुम तो हो अन्तर्यामी

रहते सबके तुम पास हो स्वामी

फिर मुझे अकेलापन क्यों

यह मुझे आभास नहीं है

चिन्ताओ से घिरा हुआ 

मेरा मन उदास क्यों है ?

मुश्किलों का सामना कर पाऊँ

इन अंधेरों को मैं अपनी

ताकत से रौशन कर पाऊँ

मुझे शक्ति दो हे स्वामी

शान्ति के पथ पर मैं चल पाऊँ

तुम तो हो अन्तर्यामी

रहते सबके तुम 

पास हो स्वामी

फिर मुझे अकेलापन क्यों 

यह मुझे आभास नहीं है।

चिन्ताओं से घिरा हुआ

मेरा मन उदास क्यों है ?

हो सकता है करम हो मेरा

बेचैनी का क्षण हो मेरा

या फिर एक भ्रम हो मेरा

दूर कर दो इसे हे स्वामी

तुम तो हो अन्तर्यामी

रहते सबके तुम पास हो स्वामी

फिर मुझे अकेलापन क्यों 

यह मुझे आभास नहीं है

चिन्ताओं से घिरा हुआ

मेरा मन उदास क्यों है ?

कोई तो होगा इसका कारण

खुशियों के संसार में मेरे

कर दिया चिन्ता ने आक्रमण

सह न पाउंगी इसे अकेली

सुलझा दो यह मेरी पहेली 

आई हूँ मैं शरण तुम्हारी

इन चिन्ताओं के चक्रव्यूह से 

बाहर निकालो मेरे स्वामी

तुम तो हो अन्तर्यामी

रहते सबके तुम पास हो स्वामी

यह मुझे आभास नहीं है

चिन्ताओं से घिरा हुआ

मेरा मन उदास क्यों है ?
 

       

- स्वर्ण सहगल