देखो सूर्य उदय हुआ पूरब से
नील गगन में छायी लाली,
कुकडूँ कूँ कह मुर्गा बाँग लगाये
सारे जग को लगती निराली।
मंद गति से बहती शीतल हवा
पशु-पंछी व मानव तन को भाये,
पंछी उड़ते जब आसमान में
चीं-चीं करती चिड़िया चहकाये।
उठ जाते है खेत-खलिहान
वृक्षों में है हरियाली छाये,
खिल उठती उपवन में पुष्प
कली-कली भी मुस्कुराये।
रंग-बिरंगी तितलियाँ उड़ती
बाग-बगीचों में मँडराये
मधुकर बैठती सुमन में
मधुरस पीकर धूम मचाये।
- राजन श्रीवास्तव (कोलकाता)