खो रहा अमन और चमन
अब तो निंदा का त्याग करो...
एक ही माँ के दो बेटो
यूं न किसी के बहकावे में आ के अपनी
माँ के आँचल को नीलाम करो
खो रहा अमन और चमन
अब तो निद्रा का त्याग करो.....
कब तक मंडल-कमंडल और मस्जिद के नाम पर कत्लेआम करोगे
जो धर्म का बोया है कुछ लोगों ने आओ आज उसका नाश करो
तुम राम मंदिर आओ राम का गुणगान करो
हम भी आते हैं मस्जिद चलो अल्लाहा को सलाम करें
राम-रहीम सब एक हैं उतार फेंको ये धर्म का चोला और धारण करो राष्ट्रवाद का
सबसे बड़ा धर्म राष्ट्रवाद और इंसानियत इनका ही पालन करो
खो रहा अमन और चमन
अब तो निद्रा का त्याग करो.....
कहते हो आजादी चाहिए माँ के आँचल से करने को हो टुकड़े तैयार
यदि भूल गए हो तो याद कर लो
अपना अतीत उस वक्त भी यही दौर था
भारत-पाक विभाजन का मुद्दा पुरजोर था
गए थे वहाँ सपनों का आशियाना बसाने गए थे
वहाँ सर आँखों पर बैठने लेकिन काफिर कहलाए थे।
फिर आये थे हमारे ही शरण में हमने सब भूल गले लगाया था
पाक को विभक्त कर तुम्हारा नया आशियाना बांग्लादेश बनाया था
और तुम्हे तुम्हारा हक दिलाया था।
त्याग करो शहादत देना राष्ट्रदोहियों को
खुद को यूं न शर्मसार करो।
याद रखना है तो याद रखो अपने ही हममजहब
राष्ट्र सम्मान ए.पी.जे. अब्दल कलाम को
अब राष्ट्रहित में कुछ तो काम करो
भारत की अखंण्डता को यूं ही न बदनाम करो
खो रहा अमन और चमन
अब तो निंदा का त्याग करो....
लेखक - विपिन यादव