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नवीन कवि
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आया वंसत
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आया मौसम बहुत सुहावन

प्रकृति देख सिंगार करते,

धीमी होती सूरज की ज्योति

नील गगन में पक्षी उड़ते।


पौधे, वृक्षों और लताओ में

नए-नए पत्ते जन्म लेते

धीमी गति से बहती हवा

वसंत को मधुऋतु भी कहते।


तितलियाँ गाती, भौंरे गुंजन करते

डाल पर बैठे कोयल कूक सुनाये,

खिल गए पुष्प, हँस रही कलियाँ

गुलाब, डाहलिया लोगों को भाये।


लहलहाते खेते में सरसो के फूल

गेहूँ, चना, मटर भी दिखते,

अपनी फसल देखकर कृषक

खुश होकर लोगों से कहते।


वंदना होती सूर की देवी की

स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती

नये मौसम की फल और सब्जी

बाजारों में खूब है बिकतें।


- राजन श्रीवास्तव (कोलकाता)