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नवीन कवि
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जुदाई
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आस के आँचल के जरिए,

मैंने देखा था तुझको,

आँचल तो न सरका,

पर तेरा जी क्यों सरक गया,

तेरी नजरें पर क्यों सरक गईं।

 

कल जाना तो है तुझे सही,

पर आज न जाने क्यों मैंने जाना,

जीया तो मेरा ही तड़पेगा,

यह तुमने क्यों न जाना।

 

हर बार न देखने की कसमें,

मैंने जो खाई थी,

पर हाय!

मुझसा फरेबी न है कोई दूसरा,

कि, हर बार मैंने इस कसम की

जंजीरें जो तोड़ी थीं।

 

पर आज न तुझे देख पाई हूँ,

न ही उन मुस्कुराती

यादों से मिल पाई हूँ,

कैसे मुस्कुराऊँ मैं

उन हसीन यादों पर,

क्योंकि वे बह जाती हैं 

मेरी आँखों से,

तेरी जुदाई का गम बनकर।

 

- शिवांगी महाराणा (उड़ीसा)