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नवीन कवि
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हिमालय
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हिमालय तेरे सिर पे हिम का है ताज।
सभी पर्वतों पे तू करता है राज
गंगा और यमुना, सिंधु तेरी नदियाँ,
काँगड़ा और कुल्लू, कश्मीर की घाटियाँ।
कस्तूरी केसर की खूश्बू बिखराते,
पशु-पक्षियों को गले से लगाते।

हमें सर्द वायु से तू ही बचाता,
समुद्री हवा रोक बरसात लाता।
सभी वृक्ष फल-फूलों से जाता,
खुश हो कृषक हर फसल है उगाता।
तेरे आँसूओं से निकलती है नदियाँ,
मिलती तेरी गोद में जड़ी-बूटियाँ।

देवदार और चीड़ के वन खड़े है,
हर क्षेत्र तेरे हरे और भरे हैं।
गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ धाम,
केदारनाथ आदि अनेक तीर्थस्थान।
कटीले झाड़ों में भी तू मुस्कुराता,
तेरी गोद में हर गरीब आश्रय पाता।

तेरे समान कोई ना है दूजा,
हिमालय तू दूनिया में है सबसे ऊँचा।
इन्द्रधनुष जब है अम्बर पर छाता,
तेरे तन पे सोने का रंग झिलमिलाता।
हर आँधी-तूफाँ से तू है टकराता, 
कोई न कर पाता तेरा बाल-बाँका।

- राजन श्रीवास्तव (कोलकाता)