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नवीन कवि
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लड़कियाँ
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कहाँ चली जाती हैं,

हँसती खिलखिलाती

चहकती महकती...

कभी चंचल नदियाँ,

तो कभी ठहरे तालाब सी लड़कियाँ....


क्यों चुप हो जाती हैं

गजल सी कहती,

नगमों में बहती 

सीधे दिल में उतरती

आदाब सी लड़कियाँ....


क्यों उदास हो जाती हैं

सपनों को बुनती,

खुशियों को चुनती

आज में अपने कल को ढूँढती

बेताब सी लड़कियाँ....


कल दिखी थी, 

आज नहीं दिखती

पंख तो खोले थे,

परवाज नहीं दिखती

कहाँ भेज दी जाती हैं,

उड़ने को आतुर

सुरखाब सी लड़कियाँ....!!!


- प्रगति तिवारी (जबलपुर)