आस के आँचल के जरिए,
मैंने देखा था तुझको,
आँचल तो न सरका,
पर तेरा जी क्यों सरक गया,
तेरी नजरें पर क्यों सरक गईं।
कल जाना तो है तुझे सही,
पर आज न जाने क्यों मैंने जाना,
जीया तो मेरा ही तड़पेगा,
यह तुमने क्यों न जाना।
हर बार न देखने की कसमें,
मैंने जो खाई थी,
पर हाय!
मुझसा फरेबी न है कोई दूसरा,
कि, हर बार मैंने इस कसम की
जंजीरें जो तोड़ी थीं।
पर आज न तुझे देख पाई हूँ,
न ही उन मुस्कुराती
यादों से मिल पाई हूँ,
कैसे मुस्कुराऊँ मैं
उन हसीन यादों पर,
क्योंकि वे बह जाती हैं
मेरी आँखों से,
तेरी जुदाई का गम बनकर।
- शिवांगी महाराणा (उड़ीसा)