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कविता संग्रह
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कृष्ण भाव
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विश्व एक 

तेरे रूप अनेक 

तू हर धर्म में रचा-बसा! 

भिन्न-भिन्न धर्म धरा पर स्थापित, 

भिन्न-भिन्न मत, भिन्न भाषाएं।

नए-नए रूप दृष्टिगत होते

मिलती नित नई - दिशाएँ।

तू सब धर्मों में स्थित हुआ

कहीं राम - रहीम,

कहीं महावीर, कहीं गौतम बुद्ध।

कहीं नानक, कहीं अल्ला सबका,

कहीं मौला, कहीं यीशू मसीह !

तेरे रूप अनेक, फिर भी तू एक।

नए-नए नाम दिए तुझे हमने,

तू नियन्ता इस सृष्टि का

तू सब रूपों में एक रूप,

तू हर रूप में बसा हुआ।

मानव का कल्याण है करता,

हर रूप तेरा इसी एक रूप में बसा हुआ।