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कविता संग्रह
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कविता संग्रह
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(1)
नया जन्म (दो)
(2)
एक अर्जुन दुर्योधन हजार
(3)
जीवन तरंग
(4)
स्वर ही ईश्वर है
(5)
आनंद
(6)
कृष्ण भाव
एक अर्जुन दुर्योधन हजार
ISBN:
एक अर्जुन दुर्योधन हजार
"मैं
एक मेरे रूप अनेक
मैं हर भाव में रचा बसा"
- कृष्ण का यह भाव
कलियुग में दुर्योधन ने
अपना लिया है.
देखो!
आज एक नए दुर्योधन का
जन्म हुआ है!
देखो! आज एक नए
युग का आरंभ हुआ हैं.
ऐसा लगता है
सच में दुर्योधन
लौट आया है!
एक नहीं अनेक रूपों में
लौट आया है.
अब उसे डर भी
नहीं कृष्ण के
सुदर्शन चक्र का!
क्योंकि कलियुग
में
लगता अपनी साधना से उसने
कृष्ण से वर पा लिया है --
तभी तो उसने कृष्ण को
मंदिर में सजे रहने
का आदेश दिया है!
तभी हम
अब
कृष्णमयी होकर
रास लीला रचाते हैं,
मंदिर में बैठकर
ढोल - मंजीरे बजाते है.
और कृष्ण से
याचना भर
करते है
कि
हे गोविंद! अब भव सागर
से पार लगा दो!
बस इस जीवन
में सब सुख-साधन जुटा दो
और
गौलोक तक जाने की
राह में फूल बरसा दो!
कृष्ण की गीता
अब गौलोक तक जाने
का साधन मात्र बन गई है --
गीता का श्रवण कर
हर कोई कृष्ण पाना चाहता है!
गीता का मनन कर,
गीता का आचरण
अब कौन करें?
क्योंकि
अब अर्जुन भी
बेबस है,
वह भी कर्म भूमि में जाकर
-- कृष्ण की गीता का
उपदेश पाकर
भी कुछ नहीं कर सकता!
क्योंकि अब अंकुश
लगाने वालों की
लम्बी कतार है
- एक अर्जुन है
और दुर्योधन कई हजार है.
और दुर्योधन अब
बहुत बलशाली है,
अब दुर्योधन एक सिर वाला नहीं,
रावण की मानिंद दस सिर वाला नहीं,
बल्कि
सौ सिरों वाला एक भीषण
दैत्य बन गया है!
अब वह तीर - गदा - कमान
लिए खड़ा एक वीर नहीं
बल्कि ढेर - सी मिसाईलें लिए,
हजारों एटम बम लिए,
रिमोट कट्रोल पर चलने वाले
कठपुतलों की सेना का
नायक बन गया है!
अब उसे युद्ध स्थल पर
जाकर
अर्जुन संग नहीं लड़ना पड़ता!
बस अब युद्ध स्थल
तो कम्प्यूटर का एक बटन
बन गया है,
अब उसे युद्ध करने के लिए
कुछ बटन दबाने पड़ते हैं.
नए - नए आदेश भी
एक असान से कोड में
दोहराने होते हैं.
बस अब सारी दुनिया,
सारी जनता
उसके एक बटन की
मोहताज बन गई है.
क्योंकि अब अर्जुन भी
कुछ नहीं करता
उसे राज महल
में रहने की
आदत पड़ गई है.
बड़ी - बड़ी गाडियां है
बड़े - बड़े बंगले हैं
और उन्ही बंगलों
में बड़ी - बड़ी
टेबलों पर
फाईलों के ढेर हैं.
उन फाईलों के
ढेरो पर हजार - हजार
ऑर्डर पास करके
उसे दिन भर
इतना वक्त भी
नहीं मिलता की
बाहर निकल सके ----
सड़कों पर,
दूर खेत - खलियानों में
जहां उसकी जनता बसती है
-- और जिसे
कम्प्यूटर
के बटन की
नहीं ----
खेत - खलियानों की,
एक छत की
और ठंडी बसंत ॠतु
की जरूरत है!