स्वर्ग से बढ़कर
आज का मानव धीरज खो रहा है, मौका मिलते ही मानो
अपनी कुंठा और क्रोध को अपने विचारों में खोल रहा है,
आशा और विश्वास से मानो दामन छोड़ रहा है
शायद जिस वस्तु की कमी उसे जिन्दगी भर सताती रही
धैर्य और नम्रता को खोकर उसी के विषय में बोल रहा है।
एक बार चार व्यक्ति कुछ इस प्रकार की बहस में उलझ रहे थे,
मानों एक दूसरे की बात को काट रहे थे।
पहला व्यक्ति बोला माया या धन के विषय में अपना मुंह खोला,
मनुष्य जीवन में धन बहुत जरूरी है इसी से जीवन चलता है
ठाट बाट, घर बाहर और सुख सभी इसी से मिलता है,
धन से आन, बान और शान और धन से इज्जत
जो चाहो सब हासिल कर लो
भइया पैसा ही सब कुछ है मान लो।
तभी दूसरा व्यक्ति बोला क्यों भाईयो स्वास्थ्य के बारे में क्या ख्याल है,
स्वास्थ है तो तुम बोल रहे हो
अपना जीवन कर्म पूरा कर रहे हो
हंसना, बोलना और धन कमाना भी स्वास्थ रहते ही कर पाओगे
वरना समाज में पीछे रह जाओगे।
अब तीसरा व्यक्ति बोला अपना बोझिल मन खोला
नहीं भाईयो तुम्हारी बात मुझे नहीं जमती
मेरी बात पर हो ना हो यकीन पर स्वास्थ्य और धन से
बढ़कर है घर में बच्चे प्यारे तीन लोग धन से बढ़कर औलाद को मानते हैं नही होने मर देवी देवना की मन्नता मांगते हैं
और यदि एक भी बच्चा हो ज्ञानी, ध्यानी, आज्ञाकारी और समझदार
तो वह तुम्हें जीवन का संपूर्ण सुख पहुंचा सकता है
बुढ़ापे की लकड़ी बन सकता है समाज में अपना नाम पैदा कर सकता है-
जिन्दा ही आपको स्वर्ग दिखा सकता है अब बताओ धन और स्वास्थ्य इसके आगे क्या हैं ?
तभी बात काट कर चौथा व्यक्ति बोला
आप लोगों की बातों में है तथ्य पर बुरा वक्त सभी के जीवन में आता है
तब स्वास्थ्य, धन और औलाद सभी की बुद्धि हर ले जाता है
इसीलिये जब कभी शनिदेव का यदि हो प्रकोप तुम पर
तब मन ही मन कर प्रणाम यह कहना
हे प्रभु सब कुछ ले लो पर मेरी बुद्धि को ना हरना
इसी बु़द्धि के द्वारा मैं फिर धन कमाऊंगा
कोई भूल न कर पाऊंगा
यदि मैं अपनी बुद्धि को स्वस्थ, संयत एवं सुरक्षित रख पाऊं
तो सब विनाशों से बच पाऊंगा
ये बुद्धि ही मेरा धन ये ही मेरी सम्पति ये सुबुद्धि है
जिसके पास हर सुख, सम्पति है उसके साथ !!