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स्वीन सैनी की कविताएं
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स्वीन सैनी की कविताएं
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रिश्तों की पीड़ा

 

जीवन की आपाधामी में कुछ ऐसा भी हो जाता है

हम पाना चाहें कुछ ओर कोई और हमें मिल जाता है

जीवन में मानव सबकुछ तोल अपनों के लिए करता रहता

फिर पत्थर दिल कोई अपना ही चुभता सो कुछ कह जाता है।

 

हम मन में अपने विष कभी घोलते नहीं

मन बात जो ना माने उसे बोलते नहीं।

अपनी नजर में कोई ना छोटा है ना बड़ा

दौलत से हम किसी को कभी तोलते नहीं।

जिस रास्ते बढ़ने लगे बढ़ते गए कदम

रास्ते सख्त को देख के हम डोलते नहीं।

जो आए दिल में आपके आप कीजिए

हम चुप रहेंगे अपनी जुबां खोलते नहीं

 

कभी कभी ऐसा भी होता है .....

यह न होना चाहिए और यह होना चाहिये

लोगो को तो रूठने का बस बहाना चाहिये

कोई नमत हो बरतने का सलीका चाहिये

यह सलीका हो तो फिर इंसान को क्या चाहिये ?

 

मैं बताऊं कब कहेंगे आप को अच्छा सभी

आप को बर्ताव सब के साथ अच्छा चाहिये

दूसरा कोई भी रंग उस पर न चढ़ पाये कभी

यह तमन्ना है तो अपना रंग पक्का चाहिये

दिन के तारे तो दिखाये इसने ऐ मुझे

और किस्मत क्या दिखाएगी यह देखना चाहिए

 

आपने अश्कों पे हंसी आने लगी है मुझको

जिन्दगी अब तो यू ही भाने लगी है मुझको।

ढोंग करते हैं जो दिन रात मसीहाई का

उनकी सच्चाई समझ आने लगी है मुझको।

बात जो मेरी समझ में नहीं आने वाली

सारी दुनिया वही समझाने लगी है मुझको।

किस तरह जिन्दगी की उलझनों को सुलझाऊ

अब तो सूझ भी उलझाने लगी है मुझको।