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आखिर क्यों ?
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मानवता के मोती
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जब ईश्वर ने मानव को बनाया

तब उसको दिए कुछ 

मानवता के मोती

भावनाओं सी हिलौरे लेती हुई नदी

पर आज मानव के पास 

शेष क्या बचा ?

आज मानव ने मानवता के 

मूल्य लुटा दिए 

नैतिकता के सब मूल्य 

नष्ट-भ्रष्ट कर दिए

अब भावनाएं मानव मन में

हिलौरे नही लेती

अब मानव ने एक 

सभ्यता का कफन ओढा है

जिसकी आड़ मे वह 

असभ्य बन गया है

नही अच्छा लगता है अब 

कोयल की आवाज में गीत

नही मानव को मानव से प्रीत

सदियों से संस्कृति की विरासत

नष्ट हो गई है

अब तो खून देखकर भी 

मानव का खून नही धधकता

अब मानव की जिंदगी 

आग बन गई है

जिसमें उसने अपने तमाम

लक्ष्यों और मूल्यों को 

स्वाहा कर दिया है 

अब मानव एक दौड़ में शामिल है

अब मानव के सब 

मूल्यों पर, लक्ष्यों पर

उद्देश्यों पर-लगा है एक प्रशनचिंह ?