हिंदी काव्य मंचों पर यदि तीन शब्दों को जोड़ा जाए - कविता, हास्य और छंद, तो मात्र एक ही नाम लोगों के मन में आता था और वो था श्री ओम प्रकाश 'आदित्य' जी का। तीखे शब्दों को कैसे शहद में डुबों के बोलना है इसमें वे परांगत थे। हास्य से प्रारंभ होकर दर्शन की ऊँचाइयों तक पहुँचने वाली उनकी काव्य संवेदना विलक्षण थी। लम्बी-चौड़ी काया के साथ जब आप अपनी ओजस्वी वाणी में राजनीति से लेकर सामाजिक कुरीतियों तक तमाम विडम्बनाओं को हँसते-हँसते लताड़ते थे तो श्रोता हँस-हँस कर लोटपोट हो जाते थे।