• Written by
    Ashwani Kapoor

  • Click on Play button to hear audio of this chapter
    Audio Length-03:07

  • Chapter 1   Nayi Subah

  • जन्मः 29 अक्टूबर 1955, दिल्ली अश्विनी का पहला उपन्यास प्रकाशित हुआ सन् 1971 में, जब वह केवल 16 वर्ष का था। युवा-पीढी विषय पर आधारित 'खोखली नींव'। जो देखा वही निरुपित किया। यह प्रयत्न आगे बढा और 1975 में 'बिखरे क्षण' लिख दिया। एक वृद्ध-दम्पति की दिनचर्या का सशक्त चित्रण एक बीस वर्षीय युवक की कलम से देख कर सहज ही आश्चर्य होता है। लेकिन उसके बाद अश्विनी का लेखक मन सो गया। वह लेखन को जीविका का साधन नहीं बना पाया। कर्म ऐसा अपनाया कि उसे किसी ने कलाकार कहा और किसी ने बस तेज दौडती जिन्दगी का सबसे 'तेज' व्यापार। ऐसे में बिखरे क्षण प्रकाशित हुआ सन् 1989 में। व्यापार की व्यस्तता से जब कभी फुर्सत मिलती, या फिर लेखक मन नींद से जागता तो कुछ न कुछ वह अवश्य लिख देता। ढेर-सी कविताएं लिखीं, और उन्हीं में से कुछ निकाल कर प्रकाशित हुईं 'रामराज्य' के नाम से सन् 1996 में। लेखक की तडप, कहीं न कहीं उसके मन को कचोटती रहती था। एकाएक कुछ ऐसा बदलाव आया जिन्दगी में कि मन साहित्य-स्रजन में फिर से जुट गया। और 2002 में श्रीमद् भगवद गीता का भावमयी काव्य अनुवाद कर दिया 'कविता में गीता' के रुप में। अब कलम नहीं रुकना चाहती। जनवरी 2003 में 'कविता में गीता' के बाद अब 'नई सुबह' के रुप में यह उपन्यास भारतीय नारी के मन में रचे-बसे संस्कारों का दर्पण है।



    नईं सुबह होगी, नए सपने होंगे
    नया-नया जीवन होगा!
    मधुर मिलन की घडियां होंगी
    नित नई तरंग जीवन में होंगी।
    हर नई सुबह जीवन की
    नया मार्गदर्शन होगा।
    ....................... वीणा के उन्हीं
    प्रतीक्षारत नयनों को
    सस्नेह
    समर्पित।

    सब कहते है सच बहुत कडुवा होता है। उसका सामना कर पाना हर किसी के बस की बात नहीं। जीवन में आई कडुवाहटों का सामना मन कैसे करे कि वह अम्रतमयी लगें। वीणा सरीखी नारी आपको हर घर में मिल जाएगी। मां के रुप में, पत्नि के रुप में, बहन के रुप में या फिर प्रियतमा के रुप में। हर नारी सहज भाव में जीवन की सच्चाईयों से जूझते दिख जाएगी। सच की कडुवाहटों के बीच वीणा सरीखी नारी पत्नि के रुप में अपने जीवन साथी में गुण ही खोजती है। उन्हीं गुणों के सहारे जीना सीखती है तो उसे पति के दोष नहीं दिखते। यही भाव है वीणा के जो गुणवानों के गुणों को देखते हैं, गुण में दोष न ढूंढने की प्रेरणा देते हैं। इन्हींभावो से उसने अपना सब कुछ अपने परिवार के कल्याण में समर्पित कर दिया। तभी यह वीणा अपनी मां को उसी के जीवन का उदाहरण देकर यही कहती है कि 'मां! मैं ही नही हर औरत कितनी आशावादी होती है। अपने जीवन की हर सुबह को नई सुबह का दर्जा देती। हर नई सुबह वह एक नए सपने को जन्म देती है। हर रोज उसकी एक नई पहचान बनती है और हर नई सुबह से उसकी आंखें इसी प्रतीक्षा में लगी रहती है कि कब उसके, उसके परिवार के सपने साकार होंगे! कब वह पूर्णता को प्राप्त होगी!' यही वीणा है नायिका इस 'नई सुबह' की। 'नई सुबह' की नायिका वीणा के जीवन-चरित्र को देख कर सहानुभूति होती है, गुस्सा भी आता है क्योंकि उस जैसी समभाव वाली नारी सरलता से नहीं दिखती हमारे समाज में और दिखती है तो उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड कैसे करते हैं सब कि उस पर भी वह स्वयं को पूर्ण मानती है। यही कथा है इस 'नई सुबह' की नायिका की।