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बचपन (कविता संग्रह)
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बचपन (कविता संग्रह)
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लौटा दो मुझे मेरा बचपन

सीधा-सादा बचपन का भोलापन

न कोई फिक्र थी न कोई गम

हरा-भरा था हर मौसम

लौटा दो मुझे वह मां का प्यार

पिता का कोमल लाड़-दुलार

भाई-बहन का सच्चा मेल

लड़ने-झगड़ने का वो खेल

लौटा दो मुझे मेरा बचपन

सीधा-सादा बचपन का भोलापन

गुड़ियों की शादी का रचाना

बारात का आना ढोलक बजाना

दुल्हन को डोली मे बिठाना

खेल थे कितने न्यारे-न्यारे

खेलते थे हम बच्चे सारे

लौटा दो मुझे मेरा बचपन

सीधा-सादा बचपन का भोलापन

बहुत मिन्नत के बाद

मिलते पैसे कभी-कभार

खुशी ऐसे होती जैसे 

मिल गया हो सारा संसार

खट्टी-मीठी पुड़िया चूरन की 

या लेते इमली का स्वाद

लौटा दो मुझे मेरा बचपन

सीधा-सादा बचपन का भोलापन

गर्मी की दोपहर कड़कती धूप

बच्चों का बना नियम था सोने का

चोरी-चोरी, चुपके-चुपके

दबे पांव खिसकना हम सबका

लगता था वो कितना अच्छा

सब याद है मुझको

लौटा दो मुझे मेरा बचपन

सीधा-सादा बचपन का भोलापन

रंग-बिरंगे गिल्ली-डंडे

खूब लगाते थे हम ढिल्ले,

लड़के-लड़की में फर्क नहीं था

खेल सभी का इक जैसा था

पतंग उड़ाना छत पर जाना

उछल-कूदकर शोर मचाना

बात-बात पर चुगली लगाना

इसी बात पर थप्पड़ खाना

सब याद है मुझको

लौटा दो मुझे मेरा बचपन

सीधा-सादा बचपन का भोलापन।

 
- स्वर्ण सहगल