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बिखरे क्षण
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बिखरे क्षण
ISBN: 81-901611-0-6

"बिखरे क्षण" की रचना अश्विनी कपूर ने 1975 में की थी, जब उनकी उम्र मात्र बीस वर्ष थी ! सन् 1989 में यह उपन्यास प्रकाशित हुआ। पिछले चालीस वर्षों में अपने व्यापार की अत्यधिक व्यस्तता होते हुए भी और कई रचनाये पूर्ण की, लेकिन इन रचनाओं को प्रकाश में लाने की पहली कड़ी का निर्माण "बिखरे क्षण" से ही करना उचित लगा। क्योंकि यह एक युवा लेखनी का एक वृद्ध दंपत्ति की दिनचर्या को चित्रित करने का प्रयास है । इस उपन्यास के मुख्य पात्र साधुराम - शान्ति अपने आज में अकेले दूर पंजाब के एक शहर ,यो जीवन व्यतीत कर रहे है| सुबह से शाम तक वे अपने बिखरे क्षणों को चुन-चुन कर, दिन बिताते है | निराशावाद अपनी चरम सीमा तक पहुँचता है तो पात्रों के संस्कार प्रबल हो कर उन्हें कुछ नया करने की प्रेरणा देते है | व्यक्ति असहाय बनता है अपनी अर्कमण्यता के कारण | इस उपन्यास के पात्र साधूराम व शांति अकेले हो कर भी असहाय नहीं | निराशा के आवरण को चीर कर वे प्रयत्न करते है, किसी को अपना सहारा बनाने का | यदि वह कोई व्यक्ति नहीं बन पता तो भक्ति में तल्लीन होकर 'उस' अज्ञात में लीन रहने का प्रयत्न उनका कितना सफल हो पाता है, इसी का चित्रण है इस उपन्यास में | लेखक ने कथानक में केवल वही क्षण चुने है जो अकेलेपन के क्षणों में किन्ही प्रतीकों को देखकर स्मरण हो आये थे साधूराम व शांति को |

("बिखरो क्षण" को पढ़ने के लिए यहां किल्क करें।)