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आनंद
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 आनंद

 

जानते हो सब सागर को नमन क्यों करते हैं ?

और सागर को इतना

बड़ा क्यों मानते हैं ?

नदी सागर में समां कर असीम सूख पाती है

वह सागर में जा कर मिल जाती है

सागर की हर बूंद नदी के जल से है

लेकिन सागर फिर भी सागर कहलाता है।

शांत – सरल सागर कितना सुंदर लगता है।

 

गर्जना करता है।

तो सब डर जाते हैं।

हाथजोड़ कर वन्दना करते हैं।

लेकिन सच तो यह भी है कि

सागर की गर्जना को सहना भी हमारी नियति है। 

क्योंकि सागर ही तो हमारा सर्वस्व ग्रहण कर लेता है। 

सागर का रूप तो सब कुछ नष्ट कर देता है।

 

तुम नदी हो – शांत भाव में बहती हो। 

जब कभी रौद्र रूप धारण करती हो तो

अपने आस-पास को नष्ट कर देती हो।  

तब तुम अपना स्वरूप ही खो देती हो।

 

ऐसे में तुम्हारा रौद्र रूप केवल सागर ही ग्रहण कर

सारी सृष्टि को शांति प्रदान करता है। 

अथाह जल नदियों का सागर ग्रहण कर लेता है। 

उफ्फ तक नहीं करता।

 

लेकिन सच तो यह भी है कि

नदी कभी सागर से टकराती नहीं

और न ही टकराने की सोचती है। 

वह तो प्रेम भाव से

सदासदा सागर में समाने को आतुर रहती है। 

 

सागर को देखो ! 

नित सूर्य की किरणों से तपता हैवर्षा का आकर्षण करता है,

वाष्प बनकर नभ में जाकर बादल का रूप धारण कर लेता है।  

नदीनाले फिर से वर्षा की बूंदबूंद पाकर अथाह जलराशि के साथ

जीवन की अठखेलियाँ करने में लीन हो जाते हैं। 

फिर से सागर में समा जाने को लालायित !

 

इस सागर को समझो !

सब कुछ सहने की शक्ति है इसमें,

सब कुछ समा जाने की शक्ति है इसमें लेकिन

फिर भी चंद्र की रौशनी में यह गरजता है।

 

इसे चन्द्र की नहींसूर्य की जरूरत है !

क्योंकि सूर्य से ही यह आकर्षित होता है,

वाष्प बनकर बादल बनता है और यह बादल वर्षा करता है

और वर्षा से सारी सृष्टिनदीनाले आनंद पाते हैं।

इस आनंद को समझो।

यही तो जीवन है।