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नई सुबह
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नई सुबह ( उन्तीस)
ISBN: 81-901611-13

 एक तेईस वर्षीय नौजवान की भावनाओं से भरी चिट्ठी थी| अमित पढने लगा| लिखा था, "मैं अभी बेरोजगार हूँ| नौकरी की तलाश कर रहा हूँ| एम.ए. तक पढाई की है| गाव में बहुत सारी जमीन है| ऐसे मे नौकरी ना भी लगे, तब भी अच्छे से गुजर-बसर हो रहा है| लड़की के विषय में जो अपने विग्यापन में लिखा है कि उस बेचारी का पति कैंसर से पीडित था| उसने सुख देखा ही क्या होगा! ऐसी औरत को सहारा देना मेरे जैसे व्यक्ति के लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी| उसकी भावनाओं का सहारा बन सकूँ यही मेरी अभिलाषा बन चुकी है| आप अपना मन बना लीजिए, मैं सीधे चला आउँगा| न मुझे दहेज चाहिए, न और कुछ| बेसहारा को सहारा देना मेरा परम कर्तव्य बन गया है|' - और अधिक न पड़ सका अमित| भावनाओं में बह गए युवक से उसे पूरी सहानुभूति थी| लेकिन जीवन का यह निर्णय सिर्फ भावनाओं के आवेश में बहकर नहीं लिया जा सकता|

 
अगला पञ बांसवाड़ा से आया था| पैंतालीस वर्षीय विधुर का| पेशे से वह इंजीनियर था| सब कुछ अच्छा लगा| साथ में संलग्न फोटो देखकर अमित झेंप गया| पैंतालीस वर्ष की उम्र तो ज्यादा थी ही, साथ में चिञ देखकर यूँ लगता था कि वह अपनी उम्र से भी दस वर्ष बड़ा है| पञ को पूरा पड़े बिना ही अमित ने उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया|
 
तीसरा पञ था दिल्ली के एक नौजवान का| उम्र केवल बतीस वर्ष, पेशे से अपना कारखाना है, लिखा था| परिवार के नाम पर माँ-बाप व एक बहन का जिक्र था| शेष कोई बात नही लिखी थी| ऐसे में अमित ने उस पञ का उतर भेज दिया| पाँच दिन बाद ही जवाब आ गया| वे अमित से मिलना चाहते थे| सुबह ही फोन पर समय लेकर वह प्रिया को साथ लिए उनके घर कालकाजी जा पहुँचा| लड़के का दाँया हाथ एक्सीडेंट में टेढा हो गया था| शेष सब कुछ ठीक लगा| शादी के विषय में पूछा तो पता लगा कि उसका तलाक शादी के छः महीने बाद हो गया था| लड़की बीमार रहती थी| लड़की के परिवार वालों ने सब बातें उनसे छिपाई थी| ऐसे में वह कैसे यह झूठ बर्दाश्त कर सकते थे| तलाक के सिवा कोई चारा नही था| बात यहीं तक हुई| अमित असमंजस में पड़ गया| कुछ समय माँग कर वह लौट आए|
 
उधर अमित से वीणा के विषय में उन्हें सब पता चल गया था| वे लोग वीणा से मिलने को उत्सुक थे| आनन-फानन वह अमित को बताए बिना ही देहरादून पहुँच गए| माँ निर्मला तो एकाएक पूरा परिवार आया देखकर ही हतप्रभ थी। एकाएक कुछ न कह पाई| माँ ने मसूरी वीणा को फोन पर सब बात बताई| वीणा का उतर सुनकर माँ की परेशानी और बड़ गई| वीणा ने कहा था, "माँ! यदि आपको सब ठीक लग रहा है तो मुझे कुछ नही कहना| आप हाँ कर दीजिए|"
 
"ऐसे कैसे हाँ कर दूँ? न मैं जानती हूँ उन्हें, न ही अमित को अभी इनके बारे में पूरा पता लगा है| मेरी मानों तुम स्कूल से छुट्टी लेकर घर चली आओ| उनसे मिल लो, फिर समझ लेंगे|"
 
माँ निर्मला को वीणा का यह व्यवहार कुछ उचित नहीं लगा| ये कैसे भाव ओड़ लिये हैं वीणा ने? कुछ देखना नहीं चाहती| माँ को कुछ अटपटा लग रहा है उनका व्यवहार और वीणा है कि बिल्कुल विरक्त भाव से बस 'हाँ' कहे जा रही है| यह पहले वाली निर्मला नहीं रही थी| अब हर कदम फूँक-फूँक कर रखना चाहती थी|
 
बड़ी चतुराई से उसने बात को संभाल लिया| लड़के वालों से यही बोलकर एक सप्ताह का समय माँग लिया कि अगले सप्ताह प्रेम आ रहा है दिल्ली| वह उन्हें वहीं मिलेगा और तब तक वह अपनी लड़की की राय भी पूरी तरह से जान लेगी और यदि सब ठीक हुआ तो वे लोग दिल्ली आकर वहीं सब तय कर लेंगे| अनमने मन से वे सब लौट आए| अमित को फोन करके माँ निर्मला ने सब बात विस्तार से बता दी| वह भी उनके इस व्यव्हार से चौंक उठा| वीणा की 'हाँ' से अधिक उसे उनकी इस जल्दबाजी का कारण जानने की बेचैनी हो उठी|
 
अगले ही दिन वह लड़के की फैक्टरी जा पहुँचा| फैक्टरी क्या थी| शाहदरा की एक गन्दी गली में एक बड़ी सी खराद की दुकान| तीन मशीनें लगी थी और लगभग सात-आठ लोग वहाँ मैले-कुचैले कपड़े पहने काम कर रहे थे| उस समय वह लड़का उसे वहाँ नहीं दिखा| वहीं सामने एक चाय दुकान पर जाकर अमित बैठ गया| उस चाय की दुकन का मालिक एक बूड़ा आदमी था| उसी से चाय लेकर अमित ने उसे लड़के के विषय में पूछा| बस फिर क्या था, सारा भेद उसने खोल दिया| लड़का तीसरी बार शादी करना चाह रहा था| पहली बीबी उसकी पाँच वर्ष पहले मर गई थी| कैसे मरी कोई नही जानता| अच्छी भली थी और एक दिन गैस का स्टोव फट जाने से जल गई| एक दो वर्ष का बच्चा था उस का| जो अब कहीं होस्टल में पड़ रहा है| दूसरी शादी हुई और छः महीने बाद तलाक हो गया| पुलिस का केस चला था उनके बीच|
 
बस| अमित और कुछ नहीं सुन सका| सीधे घर पहुँच उसने सब बात प्रिया से बताई और देहरादून फोन करके माँ को संक्षेप में सारी बात बता दी| साथ ही कह दिया कि उनका फोन आए तो कड़े शब्दों में उन्हें मना कर दें| अमित को समझ आ गया था कि दुनियाँ में सच पर पर्दा डालने वालों की कमी नहीं है| अब स्वयं को हर कदम फूँक-फूँक कर रखने के लिए तैयार कर लिया था|
 
यह बात तो टल गई, लेकिन अमित को वीणा के व्यवहार से भी आश्चर्य हो रहा था| वह कैसे आँखें मूँद कर 'हाँ' कर रही थी| वीणा को पञ लिखकर पूछना चाहता था, लेकिन माँ निर्मला का पञ पढकर उसे वीणा की सोच का खुलासा हो गया था| माँ ने लिखा था कि वीणा अब यही कहती है कि लडका जो आपको उचित लगे उसे वह वरण कर लेगी| उससे पूछोगे कि लडके में क्या देखा जो 'हाँ' कर रही हो तो उसका जवाब हमेशा नदारद पाओगे| वह हर वर में देव देखना चाहेगी और ऐसे में उसे कोई भी पसन्द नहीं आएगा| देव की कसौटी पर तोलने से बेहतर है मेरे परिवार वाले जो उचित समझेंगे मेरे लिए, वही वर मुझे पसन्द आ जाएगा| ऐसे में सब कुछ सोच समझ कर करना होगा|
 
अमित को पञ पढकर लगा कि वीणा के योग्य वर तलाशते हुए उसे न जाने कितना समय लग सकता है| लेकिन उसने भी हिम्मत नहीं हारी| फिर विग्यापन दे दिया|
 
उधर प्रिया ने उसे अच्छी खबर दे दी थी| घर में नए मेहमान के स्वागत के लिए भी वह स्वयं को तैयार करने लगा था| माँ को जब खबर लगी तो वह भी फूली न समाई| यही लिख भेजा, 'देख लेना, मेरा नाती अपनी माँसी के लिए भी बहुत भाग्यशाली साबित होगा|'
 
ढरे से और रिश्ते आए| और ऐसे में एक दिन कनाडा से आए अरुण का भी पञ आ गया| वीणा को कनाडा में रह रहे अरुण से मिलकर लगा कि जैसे शेष जीवन जीने के लिए यही वर उसके लिए उचित है| इस बार हाँ करने में उसके चेहरे पर विरक्त भाव नहीं थे| थोडी-खुशी दिखाई दी सभी को|