एक तेईस वर्षीय नौजवान की भावनाओं से भरी चिट्ठी थी| अमित पढने लगा| लिखा था, "मैं अभी बेरोजगार हूँ| नौकरी की तलाश कर रहा हूँ| एम.ए. तक पढाई की है| गाव में बहुत सारी जमीन है| ऐसे मे नौकरी ना भी लगे, तब भी अच्छे से गुजर-बसर हो रहा है| लड़की के विषय में जो अपने विग्यापन में लिखा है कि उस बेचारी का पति कैंसर से पीडित था| उसने सुख देखा ही क्या होगा! ऐसी औरत को सहारा देना मेरे जैसे व्यक्ति के लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी| उसकी भावनाओं का सहारा बन सकूँ यही मेरी अभिलाषा बन चुकी है| आप अपना मन बना लीजिए, मैं सीधे चला आउँगा| न मुझे दहेज चाहिए, न और कुछ| बेसहारा को सहारा देना मेरा परम कर्तव्य बन गया है|' - और अधिक न पड़ सका अमित| भावनाओं में बह गए युवक से उसे पूरी सहानुभूति थी| लेकिन जीवन का यह निर्णय सिर्फ भावनाओं के आवेश में बहकर नहीं लिया जा सकता|