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नई सुबह
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नई सुबह (चौदह)
ISBN: 81-901611-13
समय हँसी-खुशी बीत रहा था| वीणा के मन से डर बाहर निकल चुका था| आशावादी वह थी और अब इसी आशा के साथ वह, हर सुबह नए-नए सपने संजोती थी| कभी-कभी माँ क्रष्णा के स्वभाव से उसका दिल दुःखता था, जो अपनी ही दुनियाँ में खोई एक ही आशा को अपनी उजागर करती थी कि कब उसके घर पोते की किलकारियाँ गुँजेगी! कब वीणा उसे देव का दूसरा रुप देगी! एक ही बात की रट देखकर वीणा कभी-कभी उकता जाती थी| कहने को जी होता उसका कि कह दे उनसे स्पष्ट शब्दों में कि ऐसा करना उसके बस में नहीं| वे अपने बेटे से बात करें| लेकिन संस्कार उसके आड़े आ जाते थे| अपने से बड़ों के आगे जवाब न देना, यही उसने सीखा था| अपने दिल में छिपी आस की मुस्कुराहट प्रकट करना, न कि उसके प्रति आक्रोश जाहिर करना| दूसरे के दोष को प्रकट करना उसे नही आता था| दूसरे केगुणों को देखने की उसकी आदत थी| और शादी हुए नौ महीने बीत गए थे। देव से सहवास के वक्त तनाव भरे क्षणों से अब वह दूर रहना चाहती थी। अपनी शारीरिक जरुरत से उसने अपना ध्यान हटा रखा था| देव था कि नित्य कोशिश करता था और ऐसे में वह उसके अंगो को सहला कर उसे शान्त करने की चेष्टा करता और स्वय भी उन्ही भावों में शान्त हो जाता था| उन दोनों की इन आन्तरिक परिस्थितियों की किसी को भी खबर नहीं थी| क्योंकि सभी उन्हें सदैव खुश देखते थे| और वीणा केवल अपनी खुशियों को देखकर ही सन्तुष्ट थी| इससे अलग उसने कभी कुछ ना सोचा था|
 
रात को देर तक देव पढ़ने में व्यस्त रहता था और ऐसे में वीणा ने भी अपनी आदत बना ली थी कुछ न कुछ पढ़ने की| देर रात जब नींद से स्वयं पलकें बोझिल हो जाती, तभी वह सो जाती थी| देव कब उसके पहलू में आकर उसे छेड़ने लगता, उसे उसका भी आभास कुछ देर बाद ही होता था| ऐसी ही दिनचर्या में सुबह-सवेरे उठकर वह अपने घर के कार्यों में व्यस्त हो जाती| देव नींद से तभी जागता था जब वह चाय लेकर कमरे में लौटती|
लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ| एकाएक उसे लगा उसे स्वप्न में देव कराहता दिख रहा है| देव तड़प रहा है दर्द के करण| लेकिन वह जिसे सपना मान रही थी, वह तो वास्तविकता थी| जरा-सी आँख खुली उसकी तो देखा कमरे की बती जली हुई है और देव बेचैन से कमरे मे टहल रहा है| ये क्या, देव तो सच में दर्द से बेचैन था! वह रह-रहकर अपने हाथ से अपनी कमर के निचले हिस्से को मसल रहा था| और अपने दर्द को दबाने की चेष्टा में उसने अपने निचले होंठ को अपने दांतो के नीचे दबा रखा था| लेकिन दर्द शायद बहुत था उसे कि रह-रहकर उसके मुख से कराह निकल जाती थी| उसी कराह ने वीणा की नींद में विघ्न डाला था|
 
"क्या हुआ?" - वह घबराई-सी उठी और देव के पास चली आई. "मुझे दर्द हो रहा है पीछे|" - वीणा के हाथों का स्पर्श पाकर वह एकाएक बच्चे की भाँति फफकने लगा| वीणा घबरा गई|
 
"आप बैठिए, मैं अमित को जगाती हूं | वह डाक्टर को बुला लाएगा|"
 
- वीणा उसे अपने हाथों का सहारा देकर बिस्तर की तरफ लाने को हुई|
 
"नहीं, बैठना नही है मुझे| ऐसे ही आराम मिल रहा है|" - तब वीणा का सहारा छोड़ कर उसने हाथ को पीछे कमर के नीचे टिका लिया और बोला, " किसी को जगाने की जरुरत नही है| बस मुझे दर्द की कोई गोली दे दो और थोड़ी तेल मालिश कर दो| आराम आ जाएगा|"
 
देव की स्टडी टेबल की दराज में से वीणा ने उसे एक दर्द की गोली निकाल कर दी और बाथरुम से जाकर तेल की शीशी निकाल लाई| तब तक देव उलटा होकर पलंग पर लेट चुका था| वीणा ने अपने कोमल हाथो से उसकी मालिश शुरु कर दी|
 
मालिश से देव को आराम आ रहा था| उसका कराहना धीरे-धीरे रुक गया, लेकिन वीणा ने अपने हाथो से उसकी कमर के निचले भाग को मलना जारी रखा| ऐसा करते-करते कब उसकी पलकें झपकी उसे नही पता| उसी मुद्रा में देव की कमर को सिराहना बनाकर वह भी सो गई|
सुबह उसकी आंख देव के हिलने से ही खुली|
"अब दर्द कैसा है?" - उठते ही वीणा ने देव से पूछा|
"अब तो आराम है|" - देव ने भी बिस्तर से उठते हुए कहा, "लेकिन ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था|"
"आज चलिए अपने डाक्टर के पास| उसकी राय लेना ठीक रहेगा|" - वीणा का सुझाव देव को पसन्द आ गया| बोला, "हाँ, मैं भी यही सोच रहा हूँ| अभी तैयार होकर चलते हैं| वह अपने क्लिनिक में नौ बजे आ जाता है| पहले पहुँच गए तो प्रतीक्षा नही करनी पड़ेगी|"
"ठीक है| क्या अमित को भी साथ ले जाना है?" - वीणा ने पूछा|
"हाँ, उसे ले जाना ही ठीक रहेगा." - देव ने कहा|
"लेकिन उससे पूछ लूँ उसके काम को नुकसान न हो|" - वीणा जानती थी अमित को कितना भी काम क्यों न हो, वह देव के साथ कहीं जाने को इन्कार नहीं करता| देव के साथ उसका भावनात्मक लगाव इतना अधिक था कि कभी-कभी वीणा को लगता था, देव भी यदि किसी पर विश्वास कर सकता है तो वह अमित ही है| वीणा से भी अधिक!
 
"चाहो तो पूछ लो| लेकिन यही कहना की रुटीन चैक-अप के लिए जाना है| नहीं तो वह व्यर्थ में चिंता करेगा|" देव यह कहकर नहाने के लिए चला गया|
 
वीणा तब अमित को मिलने कमरे से बाहर निकल गई|
 
डाक्टर गुप्ता के क्लिनिक में वह दस बजे ही पहुँच गए| उस समय अभी कोई रोगी नही पहुँचा था| बाहर उनकी सेक्रेटरी ही बैठी थी| देव को वह एकदम से पहचान गई| मुस्कुरा कर उसने अभिवादन किया और बोली, "बहुत दिनों बाद आना हुआ आपका कैसे हैं आप?"
 
_ "मैं ठीक हूँ|" - देव ने मुस्कुराने की चेष्टा की| दर्द अब नहीं था| बोला, "डाक्टर साहब से मिलना जरुरी था, इसलिए पहले से समय नहीं ले सका!"
"जरुर! अभी तो फ्री है। मैं अभी पूछ कर बताती हूं। आप बैठिए!" - उन्हें बैठने को कह उसने अपने साथ रखी अल्मारी से देव की फाईल निकाली और भीतर चली गई|
दो मिनट बाद ही वह आकर बोली, "आप भीतर जा सकते है|
देव ने तब अमित को बाहर ही बैठने का संकेत किया और वीणा के साथ भीतर चला गया|
डाक्टर गुप्ता देव की ही प्रतीक्षा कर रहे थे| बड़ी गर्मजोशी से मिले, "आईए, कपूर साहब! कैसे है आप| शादी हो गई| बहुत-बहुत मुबारक हो|"
"शुक्रिया सर! आप को तो न्यौता भी भेजा था| आप आए ही नहीं| हाँ, आपका शुभकामना सन्देशा मुझे मिल गया था|" तब वीणा का परिचय करवाते हुए देव ने कहा, "ये है वीणा, मेरी पत्नी!" तब डाक्टर गुप्ता ने वीणा का अभिवादन किया , "आप कैसी है, वीणा जी, देव के साथ कैसा लग रहा है आपको?"
"बहुत अच्छा लगता है सब|" - वीणा मुस्कुरा कर इतना ही कह पाई|
"तब वह देव को देखते हुए बोले- "बोलिए, कैसे आना हुआ?" "सब ठीक चल रहा है डाक्टर साहब, कोई परेशानी नही हाँ, कल रात मुझे कमर से नीचे बहुत दर्द हुआ| इतना कभी नही हुआ| रात भर तड़पता रहा| दर्द की गोली खाई और फिर वीणा ने मालिश की| तब कुछ आराम मिला!" - देव ने विस्तार से बताया|
अब भी है, क्या दर्द!" - थोड़ी गम्भीर मुद्रा में डाक्टर गुप्ता ने पूछा|"नहीं, अभी तो नहीं है!" - देव ने कहा|
इतनी सी बात से घबरा गए! इतना बड़ा आपरेशन हो गया| वह दर्द सह लिया, तो इस दर्द की इतनी चिन्ता क्यों? - डाक्टर का पेशा है, अपने मरीज को तसल्ली देना| यही प्रयत्न किया उन्होंने|
"डर तो लगता ही है डाक्टर साहब! और वीणा भी चाहती थी एक बार जरुर दिखाउँ मैं आपको| एक वर्ष हो चला है जब से आपको मिला था|"
"चलो यह तो अच्छी बात है| इसी बहाने आप आ गए|"
- फिर डाक्टर गुप्ता वीणा की ओर देखते हुए बोले - "देखिए! मिसेज कपूर, घबराने की बात नही है| यह दर्द तो लगा रहता है| कुछ ज्यादा काम कर लिया| कभी कहीं न कहीं कुछ बदपरहेजी कर ली| बस सिस्टम में गड़बड़ हो जाती है| और फिर आप को तो घबराना नहीं चाहिए| इतना बोल्ड कदम जो आपने उठाया , देव से शादी करने का, उसके बाद तो यह छोटा-मोटा दर्द तो लगा ही रहता है!"
 
वीणा क्या! देव भी चुप हो गया| डाक्टर गुप्ता का आखिरी शब्द सुनकर| वह क्या कहती, इस बोल्ड कदम की खबर तो उसे बाद में लगी| कुछ और न बोल पाई बस मुस्कुरा कर रह गई| डाक्टर गुप्ता ने तब देव से कहा, "चलिए, भीतर आपका मुआयना करते हैं|"
 
वीणा वहीं बैठी रह गई और देव डाक्टर गुप्ता के साथ भीतर चैक-अप के लिए चला गया|
 
लगभग पाँच मिनट लगे उन्हें. लौटकर आए तो डाक्टर गुप्ता ने कहा, "दर्द की दवा लिख देता हूँ. जब भी तोड़ी सी भी तकलीफ महसूस हो खा लेना. और तो सब ठीक है|
 
- यह कहकर उन्होंने देव की फाईल पर अपने नोट्स लिखने शुरु किये| एकाएक वह बोले - "देव, आपरेशन के बाद तुम्हारा रेडिएशन तो हुआ था न? एम्स या बाम्बे टाटा तुम गए थे न?"
 
देव को आश्चर्य हुआ सुनकर, "नहीं डाक्टर, ऐसा तो नही कहा था आपने| आप देखिए, फाईल आपके पास है!"
 
"यह फाईल तो आपरेशन के बाद की है| पहले की सिर्फ चन्द बातें है इसमें| जरुर तुम्हारी डिस्चार्ज स्लिप पर लिखा होगा हमने|"
 
"नहीं डाक्टर, मेरे पास सारा रिकार्ड है| ऐसा तो कभी नहीं कहा था आपने|" - आपरेशन के बाद तो मैं डेढ़ साल तक हर महीने आपके पास आता रहा था| - देव कुछ चिन्तित हो रहा था|
 
डाक्टर गुप्ता शायद इस बहस को नही छेड़ना चाहते थे| बोले, "खैर| कोई घबराने की बात नहीं है| तब नही हुआ तो अब करवा लेंगे| लेकिन अभी नही| अभी दर्द हो तो दवा खाते रहना| यदि यह दर्द बढ़ता ही रहा तो बेहतर होगा, एक बार एम्स में अपना चैक-अप जरुर करवा लेना| यदि वे लोग जरुरत समझेंगे तो रेडियोथेरैपी कर देंगे|"
 
डाक्टर गुप्ता जैसे चाह रहे थे एकाएक कि अब देव उनके पास न आए| देव ने तब पूछा, "कोई चिंता की बात है क्या डाक्टर साहब?"
 
- वीणा ने भी इसी आशय से डाक्टर की ओर देखा| "नहीं-नहीं! ऐसी कोई बात नहीं हैं| - वह उन दोनों को तसल्ली देने की चेष्टा करते हुए बोले, "लेकिन फिर भी एक बात को ध्यान में रखनी ही चाहिए कि देव का यह दूसरा जीवन है| हमें किसी भी तरह का जोखिम नही उठाना चाहिए|"
 
"फिर रेडिएशन की बात क्यों की आपने?" - पूछा वीणा ने! "वह इसलिए कि अभी कोई परेशानी नहीं हुई तो दुबारा भी ना हो|"
 
- तब डाक्टर गुप्ता ने देव से हाथ मिलाने को अपना हाथ आगे बढ़ा दिया, "ठीक है कपूर साहब, विश यू बेस्ट आफ लक|" और वीणा की ओर अपने दोनों हाथ जोड़ दिए|
 
वे दोनों बाहर आ गए| अमित उन्हें देखकर उठ खड़ा हुआ| सेक्रेटरी को फीस अदा की| उसने पूछा, "अगली एप्वाईंटमेंट है क्या?"
 
"नहीं, अभी नहीं!" - देव ने इतना भर कहा| रास्ते में कोई कुछ नही बोला| दोनों के मन बोझिल थे| और अमित उन्हें चुप देखकर परेशान हो रहा था|
 
घर लौटे तो पाया, डाक से माँ का पञ आया हुआ था| माँ की जरुरत महसूस कर रही थी, वीणा| माँ नहीं थी, उसके लिखे शब्दों को देखकर ही मन हल्का महसूस करने लगी| माँ ने लिखा थाः
 
"मेरी प्यारी वीणा,
 
मै हरदम ईश्वर से तुम्हारी व देव जी की मंगलकामना करती रहती हूँ| ईश्वर तुम्हारा सुहाग बनाए रखे| मेरे जीवन मे सदा से एक ही आशा रही है कि मेरे बच्चे सदा खुश रहें| तुम्हारे विवाहित जीवन में तुम्हें खुश देखकर मुझे सदैव इस बात का सन्तोष रहता है कि मैंने कुछ अच्छे कर्म ही किए थे कि आज मेरे बच्चे अपने-अपने परिवार के साथ खुश है|
 
इधर रजनी की शादी की चिन्ता भी मुझे होने लगी है| पहले तो उसके ससुराल वाले शादी की जल्दी कर रहे थे, अब है कि तुम्हारे डैडी ने पिछले तीन माह में तीन पञ लिख दिए हैं| कोई जवाब नही आया| लड़के के पिता नहीं है तो बड़े भाईयों को जैसे उसकी शादी की चिन्ता नहीं है| कल ही लड़के का लिखा पञ मिला है| उसी के कहने पर मैं और तुम्हारे डैडी नागपुर उसकी माँ से मिलने जाना चाह रहे हैं| अगले हफते जाने का प्रोग्राम बनाया है|
 
देहरादून से हम दिल्ली पहुँच जाएँगे| यदि हो सके तो हमारे लिए नागपुर तक ही रेलवे की टिकट करवा देना| वापिसी भी दो दिन बाद की ही होगी| टिकट बुक करवा कर हमें सूचित कर देना| पड़ोस की थापा आँटी के घर फोन कर देना| वापिसी में हम एक-दो दिन तुम्हारे पास भी रुक जाएँगे|
 
घर में हमारी ओर से सभी को यथायोग्य कहना| देव जी को हमारा आश्रीवाद देना|
 
अपनी शुभकामनाओं के साथ,
तुम्हारी मम्मी
निर्मला|"
 
माँ का पञ पढ़कर वीणा का बोझिल-मन थोड़ा संयत हो गया| वह माँ से मिल सकेगी| मन को बड़ी सांत्वना मिली| अमित को बुलाकर उसने अपने माता-पिता के आने-जाने का प्रोग्राम बता दिया| सब सुनकर अमित की आँखें भी चमक उठी| झट से वह स्टेशन की ओर चला गया| टिकटें बुक करवाने|
 
शाम को घर लौटकर अमित ने वीणा भाभी को नागपुर आने-जाने की टिकटें थमा दी| वीणा खुश हो गई| अमित से बोली, "तुम्हें मेरे कारण कितना कष्ट उठाना पड़ता है|"
 
अपनी प्रशंसा सुनकर अमित बोला, आप ऐसे क्यों कह रही है मुझसे| मैं कोई पराया हूँ आपका?"
 
"अरे नहीं, ऐसी बात नहीं है| तुम मेरे अपने हो| मुझे तुममें प्रेम की ही छवि दिखती है| पहले प्रेम मेरे हर काम में सहयोग देता था| अब तुम मुझे मिल गए हो, यही तो समझती हूँ|" - वीणा भावुक हो चली थी| "मुझे सदा आप प्रेम जैसा ही पाएँगी| देव का छोटा भाई, आपका भाई बन कर रहूँ, मुझे इससे बड़ी खुशी क्या मिलेगी?"
 
वीणा ने तब स्नेह से अमित के सिर पर हाथ रख दिया और अमित भी भावुक हो उठा| वीणा को लगा, कोई है यहाँ भी जिससे वह अपनी आन्तरिक भावनाएँ बाँट सकती है|
 
"मम्मी-डैडी आएँगे तुम उन्हें लेकर आ जाना| स्टेशन पर भी तुम्हीं उन्हें छोड़ कर आना| वापसी में वे हमारे पास दो-दिन रहेंगे| तुम्हें ही उनका ध्यान रखना होगा |" - तब वीणा ने कहा उससे| "आपको कुछ कहने की जरुरत नहीं है| यह मेरा कर्तव्य है| मैं सब ध्यान रखूँगा!" - अमित ने उसे आश्वस्त किया|
 
वीणा को अब अपने माता-पिता से मिलने की प्रतीक्षा थी|