शांति आँगन में बिछी खात पर लेटी हुई थी | उसके मुख पर प्रसन्नता थी | उसके होंठ मुस्कुरा रहे थे | उसकी आँखों में उल्लास की दीप्ति थी | मन की बोझिलता, आँगन का सूनापन समाप्त हो गया था | आज उसे सभी कुछ ........, घर की प्रत्येक वास्तु सुन्दर प्रतीत हो रही थी | उसके मस्तिष्क का विचार-पक्ष सुन्दर सुखद तथ्य बटोरने में मग्न था | आनंदमयी - क्षणों का ताना-बना बुन रही थी वह | रह-रह कर सोच रही थी - ' अहा | आज इस आँगन का सूनापन समाप्त हो जाएगा | आज शाम को मोहन आएगा | मोहन हमारे लिए सतीश बन जाएगा | कितना अच्छा होगा | हमारा जीवन पुन: शांत सरल बन जाएगा | अक्सर मन में उमड़ने वाला विछोह का आवेग अब विलुप्त हो जाएगा......, पुन: कभी आकर हमें नहीं तडपाएगा | अब मन की उदासी मिट जाएगी | अहा | ..... '