अचानक साधू राम की आँख खुल गई | भीतर कमरे में हो रहे 'खट-खट' के स्वर को सुनकर वह चौकन्ना हो गया | कमरें में उसे किसी की उपस्थिति का आभास हुआ | कुछ क्षण तब उसके कान भीतर की आहात सुनने का प्रयत्न करते रहे | स्वप्न नहीं वास्तिविकता थी | भीतर कमरे में कोई था | साधूराम धीरे से उठा, साहस कर दबे पाँव कमरे की और बढ़ा | कमरे की बत्ती का खटका दरवाजे के समीप ही था | किसी प्रकार की आहट किये बिना उसने हाथ आगे बड़ा कर बत्ती जला दी और तेजी से कमरे में घुस कर दरवाजा बंद कर दिया | कमरे के भीतर खड़ा प्राणी इस स्थिति के लिए तैयार नहीं था | वह चौकं कर मुडा | बंद दरवाजे के सहारे घर के स्वामी को खड़ा देखकर हतप्रभ रह गया | कहीं से भाग नहीं सकता था | उसके कठोर ह्रदय में एकाएक भय समा गया , वह थर-थर काँपने लगा |