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कविता में गीता
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कृष्ण भाव
ISBN: 81-901611-05

 कृष्ण भाव


विश्व एक
तेरे रूप अनेक
तू हर धर्म में रचा- बसा!
भिन्न - भिन्न धर्म धरा पर स्थापित,
भिन्न - भिन्न मत, भिन्न भाषाएँ |
नए - नए रूप दृष्टिगत होते
मिलती नित नई - दिशाएँ |
तू सब धर्मो में स्थित हुआ
कहीं राम - रहीम,
कहीं महावीर, कहीं गौतम बुद्ध |
कहीं नानक, कहीं अल्ला सबका,
कहीं मौला, कहीं यीशू मसीह !
तेरे रूप अनेक, फिर भी तू एक |
नए- नए नाम दिए तुझे हमने,
तू नियन्ता इस सृष्टि का
तू सब रूपों में एक रूप,
तू हर रूप में बसा हुआ |
मानव का कल्याण है करता,
हर रूप तेरा इसी एक रूप में बसा हुआ |